परसों किसी ने केजरीवाल पर स्याही (इंक) फेंक दी। अब तक जूते फेंकने की परम्परा रही है। स्याही फेंकना एक नए युग की शुरुआत है।
वैसे देखें तो स्याही फेंकने के कई फायदे हैं जो जूते फेंकने में नहीं है।
पहला तो यह कि स्याही सस्ती पड़ती है। बीस-तीस रुपयों में एक बोतल आ जाती है। जूते फेंकने में खर्च ज़्यादा आयेगा क्योंकि जब आपको पुलिस पकड़कर ले जा रही होगी तो आप फेंका हुआ जूता तो वापस माँगने नहीं जायेंगे। हाँ, अगर फेंकने के लिए एक एक्स्ट्रा जूता बैग में लेकर आयें तो अलग बात है। पर मामला फिर भी खर्चीला है।
दूसरी बात यह कि जूता फेंकने पर दाग नहीं पड़ता। स्याही फेंकने पर दाग कई दिनों तक रहता है। आपके हमले से हुए ज़ख्मों के निशान दुश्मन के शरीर पर लम्बे समय तक रहते हैं।
तीसरा यह कि स्याही फेंकने से शोहरत तो मिलती है पर कानूनी सज़ा मिलने के मौके कम हो जाते हैं। स्याही से शारीरिक चोट नहीं पहुँचती। इसलिए कोई वकील यह नहीं कह सकता कि आपका उद्देश्य चोट पहुँचाना था या जानलेवा था।
चौथा यह कि स्याही फेंकना ज़्यादा भारतीय है। इसमें होली वाला फलेवर आ जाता है।
वैसे देखें तो स्याही फेंकने के कई फायदे हैं जो जूते फेंकने में नहीं है।
पहला तो यह कि स्याही सस्ती पड़ती है। बीस-तीस रुपयों में एक बोतल आ जाती है। जूते फेंकने में खर्च ज़्यादा आयेगा क्योंकि जब आपको पुलिस पकड़कर ले जा रही होगी तो आप फेंका हुआ जूता तो वापस माँगने नहीं जायेंगे। हाँ, अगर फेंकने के लिए एक एक्स्ट्रा जूता बैग में लेकर आयें तो अलग बात है। पर मामला फिर भी खर्चीला है।
दूसरी बात यह कि जूता फेंकने पर दाग नहीं पड़ता। स्याही फेंकने पर दाग कई दिनों तक रहता है। आपके हमले से हुए ज़ख्मों के निशान दुश्मन के शरीर पर लम्बे समय तक रहते हैं।
तीसरा यह कि स्याही फेंकने से शोहरत तो मिलती है पर कानूनी सज़ा मिलने के मौके कम हो जाते हैं। स्याही से शारीरिक चोट नहीं पहुँचती। इसलिए कोई वकील यह नहीं कह सकता कि आपका उद्देश्य चोट पहुँचाना था या जानलेवा था।
चौथा यह कि स्याही फेंकना ज़्यादा भारतीय है। इसमें होली वाला फलेवर आ जाता है।