Remember onions? There’s a quality in them. No, not that they make you weep while you slaughter them. But that they have layers under layers in them. A thing we find in things around us too. They have different meanings, personalities and characters beneath the skin. But we sometimes miss to see them. This blog is an effort to explore those layers in an amusing way.
Saturday, December 31, 2011
Friday, December 30, 2011
Thursday, December 29, 2011
Wednesday, December 28, 2011
Friday, December 02, 2011
Saturday, November 19, 2011
Wednesday, November 16, 2011
Wednesday, October 19, 2011
Monday, October 17, 2011
Monday, October 10, 2011
Friday, October 07, 2011
Friday, September 30, 2011
Wednesday, September 28, 2011
Wednesday, September 21, 2011
Tuesday, September 20, 2011
Saturday, September 17, 2011
Thursday, September 15, 2011
Har ek client jarooree hota hai !
Brand ke liye jaise logo hota hai
Waise har ek client jarooree hota hai
Aise har ek client jarooree hotaa hai
Koi subah nau baje office pahunchaaye
Koi raat teen baje tak roj jagaaye
Ek tere creative par 'well done' karey
Aur ek artwork par brief change karey
Koi nature se sweet.....koi BC hota hai
Par har ek client jarooree hota hai
Ek phone par hi saaree briefing karey
Ek font size par baar-baar meeting karey
Clarity se koi karey sab alright
Confusion se koii lagwaa de pooree night
Koi effortless, koi brainless hota hai
Lekin har ek client jarooree hotaa hai
Chhota client, koi motaa client
Koi PSU wala boring client
Koi international hip-hop client
Koi aataa-sattu wala desee client
Cool client...fool client
Yes client...no client
Rich client...bitch client
Top client....dead client
Naamee client....haraamee client
Chutiye...fucker
Client is God....God is client
A-Z
Soch-soch ke brain kaa curd hotaa hai
Par har ek client jarooree hotaa hai
Lekin har ek client jarooree hota hai
Friday, September 02, 2011
Thursday, August 18, 2011
'मेरा कुछ सामान' गीत का भावार्थ
प्रस्तुत गीत सुप्रसिद्ध हिन्दी फिल्म 'इजाज़त' से लिया गया है. इस गीत की लोकप्रियता को ऐसे समझा जा सकता है. हमारे समाज में कई सम्प्रदाय हैं जो विभिन्न देवताओं, पैगम्बर, गुरुओं और मसीहा के अनुयायियों से बने हैं. पर एक सम्प्रदाय ऐसा भी है जो एक गीत के प्रशंसकों से बना है. 'मेरा कुछ सामान' ही वह गीत है. साल-दर-साल गुजरते जा रहे हैं, और यह सम्प्रदाय बड़ा होता जा रहा है.
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
आपने कई लोगों को ब्रेक-अप के बाद अपने प्रेमी/प्रेमिकाओं को उनकी चीजें लौटाते देखा होगा. बड़ा ही कड़वा अनुभव होता है. कल तक जो लोग एक-दूसरे की आँखों में आँखें डाल घंटों बिताते थे, अब वही लोग कागज़ के टुकड़े पर ली गई और वापस लौटाने वाली चीजों की हिसाब लगा रहे होते हैं. प्रेम के काव्य से पैसों के गणित में पहुँच जाते हैं.
गुलज़ार जैसा शब्द-शिल्पी ही ऐसे कड़वे अनुभव को बिलकुल अनूठे अंदाज़ में पेश कर सकता है. मिर्च में मिठास ला सकता है. नफरत से भरी आँखों में नमी ला सकता है. .
सावन के कुछ भींगे-भींगे पल रखे हैं
और मेरे एक ख़त में लिपटी राख पड़ी है
वो रात बुझा दो, मेरा वो सामान लौटा दो - २
दो तरह के प्रेमी होते हैं - तुच्छ और उच्च.
तुच्छ प्रेमियों की आसक्ति वस्तुओं में होती हैं. वो यह हिसाब लगाते हैं कि दूसरे से उन्हें क्या-क्या तोहफे मिले! मसलन लाफिंग बुद्ध वाली की-रिंग, सूट-पैंट का कपड़ा, हीरे की अंगूठी, आई-पॉड या क्रेडिट कार्ड.
उच्च प्रेमियों का लगाव अनुभवों में होता है. वो यह देखते हैं कि दूसरे इंसान के साथ उन्होंने कौन-कौन से मीठे पल बिताए, उन्हें कौन सी मधुर यादें मिलीं.
इस गीत की नायिका एक उच्च प्रेमी है. जब वो अपने प्रेमी से साथ बिठाये उन मधुर पलों को लौटाने की बात कहती है तो साफ़ झलकता है वो इन पलों को फिर से बिताना चाहती है. रिश्ते के टूटने पर उसके मन में नफरत नहीं है, प्यारा सा दर्द है.
पतझड़ है कुछ, है ना
पतझड़ में कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों में एक बार पहनकर लौटाई थी
पतझड़ की वो शाख अभी तक कांप रही है
वो शाख अभी तक कांप रही है
वो शाख गिरा दो, मेरा वो सामान लौटा दो - २
एक प्यारे रिश्ते का बसंत तो प्यारा होता है ही, साथ ही पतझड़ की भी सुन्दरता कम नहीं होती. जब रिश्ता थोड़े कठिन वक़्त से गुजर रहा होता है, तब छोटे- मोटे झगड़ों का स्वर दिलों में प्रेम को बढाता है. बढ़ती दूरी कई बार नज़दीकी लाने वाला एक क़दम साबित होती है. यहाँ प्रेमिका उन्ही झगड़ों को याद कर रही है. वह उन्हें भी वापस चाहती है.
एक अकेली छतरी में जो आधे-आधे भींग रहे थे
आधे गीले, आधे सूखे, सूखा तो मैं ले आई थी
गीला मन शायद बिस्तर के पास पड़ा हो
वो भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
यहां प्रेमिका उन कठिन पलों को याद कर रही है जो उन्होंने एक दूसरे का साथ देते बिताए थे. वो बोलती है कि अपने प्रेमी का दिया प्यार तो वो ले आयी थी, पर अपने दुखों को उसके पास छोड़ आयी थी. अब वह अपने दुःख वापस चाहती है. वो नहीं चाहती कि उसका प्रेमी उन्हें देखकर दुखी हो.
एक सौ सोलह चाँद की रातें एक तुम्हारे काँधे का तिल
गीली मेहंदी की खुशबू कुछ, झूठ-मूठ के शिकवे कुछ
झूठ-मूठ के वादे भी कुछ याद करा दूं
सब भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
अब प्रेमिका मिलन की रातों को याद कर रही है. प्रेमी के शरीर पर तिल उसके अन्दर प्रेम-क्रीडा की लालसा को जगाता था. यहाँ रिश्ते में शारीरिक सामीप्य का पक्ष उजागर हो रहा है. प्रेमिका उन यामिनियों को फिर से बिताना चाहती है. नहीं निभाये गए वादों को फिर से सुनना चाहती है. कई वादे निभाने के लिए नहीं. बल्कि दूसरे इंसान में एक मीठी आस जगाने के लिए किये जाते हैं.
एक इजाज़त दे दो बस जब इसको दफ़नाउंगी
मैं भी वहाँ सो जाउंगी, मैं भी वहाँ सो जाउंगी
अंत में प्रेमिका निराश दिखती है. शायद उसे अहसास हो गया है कि वो बिताये पल वापस नहीं आने वाले. वह उन्हें हमेशा के लिए ख़त्म कर देना चाहती है. साथ ही खुद भी ख़त्म हो जाना चाहती है. प्रेम के साथ जीवन का अंत!
कहते हैं, एक तस्वीर हज़ार शब्दों के बराबर होती है. पर इस गीत का एक-एक शब्द हज़ार तस्वीरों के बराबर है. और यह तस्वीरें वक़्त के साथ धूमिल नहीं पड़तीं. हम कितनी भी बार इस गीत को सुन लें, वो तस्वीरें बार-बार नए रंगों में हमारी आँखों में उभरती रहती हैं.
- आलोक रंजन
(गुलज़ार साहब के जन्मदिन पर)
Friday, August 12, 2011
Tuesday, August 09, 2011
Friday, July 29, 2011
Wednesday, July 27, 2011
'भाग भाग डी के बोस' गीत की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ सुपरहिट फिल्म 'देल्ही बेली' के एक सुपरहिट गीत की हैं. हिन्दी फिल्म जगत से कभी-कभार ऐसे गीत आते हैं जो शालीनता और मर्यादा को ठेंगा दिखाकर करोड़ों दिलों को छू जाते हैं. शायद सभ्यता के दबाव से परेशान इंसान को इस तरह के गीतों से बंधन तोड़ने का अहसास होता है, और इसके शब्द हर जुबान पर चढ़ जाते हैं.
Toh by god lag gayi
Kya se kya hua
Dekha toh katora
Jhaanka toh kuaa
Piddi jaissa chuhaa
Dum pakda toh nikla kala naag
Naag naag
Bhaag…>>>
Bhaag bhaag DK bose, DK bose, D K bose
bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…. (x2 times)
Aandhi aayi aandhi aayi aandhi aayi..
Bhaag bhaag DK bose, D K bose, D K bose
Bhaag bhaag DK Bose dk bhaag….
Aandhi Aayi hai…
Hum toh hai kabootarr, Do pahiye ka ek scooter Zindagi
Daddy mujhse bola, Tu galati hai meri
Tujhpe Zindagani guilty hai meri
Saabun ki Shaqal mein, beta tu toh nikla keval jhaag
Jhaag jhaag…
Bhaag >>>
Bhaag bhaag……
Tujhpe Zindagani guilty hai meri
Saabun ki Shaqal mein, beta tu toh nikla keval jhaag
Jhaag jhaag…
Bhaag >>>
Bhaag bhaag……
दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिनके पिताओं ने उन्हें कम से कम एक बार नालायक ना कहा हो, अपनी अपेक्षाओं की दुहाई ना दी हो. भले ही वो पिता चार बार मैट्रिक फेल सरकारी चपरासी क्यों ना हो, वो अपने बेटे की तुलना खुद से करता ही करता है. गीत का नायक भी पिताओं के इस विचित्र मनोविज्ञान से पीड़ित है.
Toh by god lag gayi
Kya se kya hua
Dekha toh katora
Jhaanka toh kuaa
Piddi jaissa chuhaa
Dum pakda toh nikla kala naag
Naag naag
Bhaag…>>>
इन पंक्तियों का पिछली पंक्तियों से क्या सम्बन्ध है, कह पाना मुश्किल है. बस इतना समझ आता है कि नायक किसी बड़ी मुसीबत में फंसा है.
Bhaag bhaag DK bose, DK bose, D K bose
bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…. (x2 times)
Aandhi aayi aandhi aayi aandhi aayi..
Bhaag bhaag DK bose, D K bose, D K bose
Bhaag bhaag DK Bose dk bhaag….
Aandhi Aayi hai…
यह पंकियां इस गीत की आत्मा हैं. इसके शब्द दिल्ली की संस्कृति पर प्रकाश डालते हैं. परन्तु कैसे?
हर जगह की अपनी एक पहचान होती है. कश्मीर पर्वतीय सुन्दरता के कारण जाना जाता है, केरल समुद्र की सुन्दरता के कारण. बंगलोर सॉफ्टवेर उद्योग के कारण जाता है. तो मुंबई फिल्म उद्योग के कारण. दिल्ली जानी जाती है माँ-बहन से नाजायज संबंधों और जननांगों पर आधारित अपशब्दों के अत्यधिक प्रयोग के कारण. एक फूल की प्रशंसा करते वक़्त भी एक सच्चा दिल्लीवासी माँ-बहनों को याद करना नहीं भूलता.
'डी के बोस और 'बोस डी के' की शाब्दिक कलाबाजी द्वारा गीतकार ने एक झटके में दिल्ली से साक्षात्कार कराने के साथ-साथ गीत को सुपरहिट बनाने की संजीवनी बूटी दे दी है. आज के समाज में जहां गीतों और संवादों में अपशब्दों के प्रयोग को सांस्कृतिक प्रगति का पैमाना माना जा रहा है, वहाँ इस इस शाब्दिक शीर्षासन ने एक मील के पत्थर के रूप में अपनी छवि बनाई है.
Hum toh hai kabootarr, Do pahiye ka ek scooter Zindagi
Jo na * toh chale
Arre kismat ki hai kadki, Roti? Kapda aur Ladki teeno hi
Paapad belo toh miley ..
Yeh bheja garden hai, aur tension maali hai.. yeah..
Mann ka taanpura, frustration me chhede ek hi Raag
Raag Raag….
Bhaag…
Arre kismat ki hai kadki, Roti? Kapda aur Ladki teeno hi
Paapad belo toh miley ..
Yeh bheja garden hai, aur tension maali hai.. yeah..
Mann ka taanpura, frustration me chhede ek hi Raag
Raag Raag….
Bhaag…
यहाँ गीत के नायक की जीवन की परेशानियों का चित्रण है. ऊटपटांग ढंग से कबूतर और स्कूटर में तुकबंदी कराने की कोशिश की गयी है. पर साथ ही एक बड़ी महत्त्वपूर्ण बात बतायी गयी है. वो यह कि नायक रोटी, कपड़ा और लड़की चाहता है, रोटी, कपड़ा और मकान नहीं. बड़ा ही इमानदारीपूर्ण वक्तव्य है ये. इससे दो चीजें पता चलती हैं. पहली तो यह कि मकानों के बढ़ते दामों के कारण नायक दिल्ली में मकान के सपने नहीं देखता. दूसरी यह कि लड़की के साथ होने पर नायक मकान की ज़रुरत महसूस नहीं करता. किसी भी सार्वजनिक स्थान पर प्रेम-क्रिया करने का साहस है उसके पास.
Bhaag bhaag DK bose, DK bose, D K bose
bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…. (x2 times)
Hey Aandhi Aayi Hai Aandhi Aayi Hai
Aandhi Aayi Hai…
Bhaag bhaag DK bose, DK bose, D K bose
Bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…
Daddy mujhse bola, Tu galati hai meri
Tujhpe Zindagani guilty hai meri
Saabun ki Shaqal mein, beta tu toh nikla keval jhaag
Jhaag jhaag jhaag
Bhaag
Bhaag bhaag DK bose, DK bose, D K bose
Bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…. (x2 times)
aandhi aayi aandhi aayi aandhi aayi
Bhaag bhaag DK bose, D K bose, D K bose
bhaag bhaag DK Bose dk bhaag….
Aandhi Aayi hai…
bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…. (x2 times)
Hey Aandhi Aayi Hai Aandhi Aayi Hai
Aandhi Aayi Hai…
Bhaag bhaag DK bose, DK bose, D K bose
Bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…
Daddy mujhse bola, Tu galati hai meri
Tujhpe Zindagani guilty hai meri
Saabun ki Shaqal mein, beta tu toh nikla keval jhaag
Jhaag jhaag jhaag
Bhaag
Bhaag bhaag DK bose, DK bose, D K bose
Bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…. (x2 times)
aandhi aayi aandhi aayi aandhi aayi
Bhaag bhaag DK bose, D K bose, D K bose
bhaag bhaag DK Bose dk bhaag….
Aandhi Aayi hai…
यहाँ पुरानी पंक्तियों को दुहराया गया है. अतः उनपर फिर से चिंतन करने की ज़रुरत नहीं.
इस गीत का संगीत लोगों को ऊर्जा से भर देता है. 'भाग भाग' जैसे शब्द दर्शक को सिनेमाहाल से भागने के लिए नहीं, बल्कि वहाँ बैठकर आनंद लेने के लिए प्रेरित करते हैं. सिनेमा को समाज का दर्पण माना जाता है, यह कहकर गीतकार 'बोड डी के' जैसे शब्द का प्रयोग उत्साह के साथ करता है.यह गीत सांस्कृतिक क्रान्ति का सूचक है. वह दिन दूर नहीं जब ऐसे गीतों की लोकप्रियता के कारण २-३ साल के बच्चे भी अपनी मधुर वाणी में अपशब्द बोलकर हमारे कानों को झंकृत और दिल को आह्लादित करेंगे.
Monday, July 25, 2011
ॐ भ्रष्टाचाराय नमः!!
आजकल एक फैशन सा चल पडा है. भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन करने का फैशन. लोग बिना सोचे-समझे भ्रष्टाचार का आमूल नाश करने पर तुल गए हैं. आखिर करें भी क्यों नहीं? इससे तुरंत लोकप्रियता जो मिल जाती है.
पर कोई यह सोचना नहीं चाहता कि भ्रष्टाचार वाकई देश के लिए अच्छा है या बुरा. बस एक ही रट लगा राखी है - भ्रष्टाचार हटाओ, भ्रष्टाचार हटाओ. अरे भाई, क्यों हटायें हम भ्रष्टाचार? बेचारे भ्रष्टाचार ने बिगाड़ा ही क्या है?
भ्रष्टाचार से गरीबी हटती है. जिस इंसान के पास कल तक बस के किराए के पैसे नहीं होते थे, आज वह करोड़ों के बैंक बैलेंस, गाड़ियों और बंगलों का मालिक है. और यह चमत्कार होता है सिर्फ एक चुनाव जीतने के कारण. जब देश का राजा ही अमीर नहीं होगा, तो प्रजा कैसे अमीर होगी?
लोगों की शिकायत है कि देश के लाखों करोड़ों रुपये विदेशी बैंकों में जमा हैं.अब अपने देश के बैंकों का तो भरोसा है नहीं. मंदिर में भी धन सुरक्षित नहीं है. यहाँ कोई सुरक्षित है तो संसद और 5 स्टार होटलों में गोलियां बरसाने वाले आतंकवादी. ऐसे में अगर हमारे दूरदर्शी राजनेताओं ने देश का थोड़ा पैसा बाहर सुरक्षित रख ही दिया तो इसमें गलत क्या है!
यह तो रही राजाओं की बात; अब आते हैं प्रजा तक. भ्रष्टाचार आम आदमी की ज़िंदगी को भी आसान बनाता है.
आम आदमी को गैस सिलिंडर के लिए लाइन में नहीं लगना पड़ता. ट्रेन के महंगे टिकट नहीं खरीदने पड़ते. चालान के पैसे नहीं भरने पड़ते. छोटे-मोटे अपराधों के लिए जेल नहीं जाना पड़ता. और तो और भ्रष्टाचार सरकारी कर्मचारी की कार्यक्षमता को बढाता है. ज़रुरत है बस थोड़ा एक्स्ट्रा खर्च करने की.
एक्स्ट्रा खर्च करने के लिए धनी बनना आवश्यक है. हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है - 'धनमेवं बलं लोके'. अर्थात इस लोक में धन ही बल है. भ्रष्टाचार लोगों को धनी बनने के लिए प्रेरित करता है. अगर देश में अमीर और गरीब के साथ समान सलूक किया जाए तो अमीर बनना कौन चाहेगा?
कल हमारा देश अगर फिर से सोने की चिड़िया बन जाता है, तो इसका एकमात्र श्रेय जाएगा भ्रष्टाचार को. अतः ज़रुरत है कि हम हरेक स्तर पर भ्रष्टाचार को उचित सम्मान दें. भ्रष्टाचार है तो विकास है, विकास करने की प्रेरणा है.
कॉपीराईट - आलोक रंजन
Friday, July 22, 2011
अगर आप धैर्य सीखना चाहते हैं तो लड़कियों के कपडे की दुकान जाइए!
बचपन से ही मैंने छिपकली को धैर्य के मामले में अपना गुरु माना है. यह न तो उड़ सकती है, न उछल सकती है और न ही काफी तेज़ भाग सकती है. पर कई मीटर दूर सुस्ता रहे कीड़े को शिकार बना डालती है. यह कीड़ा उड़ सकता है और पलक झपकते छिपकली की पहुँच से दूर जा सकता है. पर छिपकली बड़े आराम से, धीरे-धीरे, बिना कोई जल्दबाजी दिखाए, बिना आवाज़ किये उस तक पहुँचती है और एक झटके में उसे गटक डालती है.
पर कुछ समय पहले मुझे भाग्य से एक नया गुरु मिल गया जिसके सामने छिपकली नर्सरी की विद्यार्थी से ज़्यादा कुछ भी नहीं. वो है लड़कियों के कपड़ों की दुकान में बैठा सेल्समैन.
लड़कियों को ईश्वर ने एक अद्भुत प्रतिभा दी है. जौहरी की तरह कपड़ों को परखने की क्षमता. उनके सामने आप हज़ारों कपड़ों का अम्बार खड़ा कर दें. वो घंटों परिश्रम करके, हर कपडे के एक-एक धागे का एकाग्रचित्तता से अनुसंधान करके अपना पसंदीदा कपड़ा खोज ही निकालेंगी. भले ही वो कपड़ा एक नन्हा सा रुमाल क्यूँ न हो!
अगर सामने कपड़ों का अम्बार न हो तो वे अपना उत्साह नहीं खोतीं. वो पूरी तल्लीनता से कपड़ों का अम्बार खड़ा करने में जुट जाती हैं.
ऐसी विशेष परिस्थिति में उस दुकान के सेल्समैन का धैर्य निखरकर सामने आता है. भले ही उस नारी को साड़ी खरीदनी हो पर वो प्रत्येक स्कर्ट, ब्लाउज, टॉप, टू पीस, टी शर्ट, बंजारा सूट, घाघरा इत्यादि का व्यक्तिगत रूप से निरीक्षण करेगी ही करेगी. सिर्फ अपने साइज़ का नहीं, बल्कि पृथ्वी के हर इंसान के साइज़ का.
वह सेल्समैन कभी अपनी मुस्कान नहीं खोता. महात्मा बुद्ध जैसी परम शान्ति अपने चेहरे पर चिपकाए वो एक के बाद एक कपड़ा दिखाते जाता है. उसकी आतंरिक शान्ति इस विचार से भी भंग नहीं होती कि उस नारी के प्रस्थान के पश्चात उसे उन सैकड़ों कपड़ों को बारी-बारी से तह लगाकर वापस शेल्फ में सजाना है. ताकि पंद्रह मिनट बाद फिर कोई अन्य जुझारू नारी आए तो उसे अम्बार खड़ा करने के अवसर से वंचित न रहना पड़े.
इस परम धैर्य के प्रदर्शन के बाद उसे मिलता ही क्या है? कई बार नारियां घंटों लगाने के बाद कुछ भी नहीं खरीदतीं. कुछ तो बिल बनवाने के बाद अपने फैसले से मुकर जाती हैं.
कभी-कभी सोचता हूँ अगर उस धैर्य का दस प्रतिशत भी मुझमें आ जाए तो मैं यह मानव जीवन सफल मानूंगा. पर यह धैर्य आए कैसे? मुझमें तो लड़कियों के साथ शॉपिंग जाने का भी साहस नहीं.
आलोक रंजन
ब्लॉग: http://alok160.blogspot.com/
अन्य रचनाएँ: https://www.facebook.com/notes.php?id=607557539
Wednesday, July 20, 2011
मैं आपकी गाड़ी का होर्न बोल रहा हूँ
आप सबने मुझे हज़ार बार सुना होगा, पर मेरी कभी नहीं सुनी.
'पें-पें' की कर्कश आवाज़ के पीछे मेरी कई भावनाएं भी हैं, इस पर आपका ध्यान कभी नहीं गया. जाए भी कैसे? जब कोई दूसरा मुझे बजाता है तो आपके मन में गालियाँ आती हैं. जब आप खुद अपने कर-कमलों से मुझे बजाते हैं तो इस मद में चूर हो जाते हैं कि आपकी उँगलियों की नन्ही हरकतों से सामने खड़ी गाड़ियां आपके सामने से हटने के लिए खुद-ब-खुद प्रेरित हो जाती हैं.
'पें-पें' की कर्कश आवाज़ के पीछे मेरी कई भावनाएं भी हैं, इस पर आपका ध्यान कभी नहीं गया. जाए भी कैसे? जब कोई दूसरा मुझे बजाता है तो आपके मन में गालियाँ आती हैं. जब आप खुद अपने कर-कमलों से मुझे बजाते हैं तो इस मद में चूर हो जाते हैं कि आपकी उँगलियों की नन्ही हरकतों से सामने खड़ी गाड़ियां आपके सामने से हटने के लिए खुद-ब-खुद प्रेरित हो जाती हैं.
वैसे तो मैं दुनिया की हर गाड़ी का एक महत्त्वपूर्ण अंग हूँ और मेरा आविष्कार सामने वाली गाड़ी को अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाने के लिए हुआ था. पर धीरे-धीरे कई उद्देश्य जुड़ते गए.
बच्चों ने मुझे खिलौना बना डाला. वो खड़ी गाड़ी में घुसकर मुझे भिन्न-भिन्न गतियों से बजाते हैं. एक ही आवाज़ तरह-तरह से मुझसे निकलती है. उनका मनोरंजन हो जाता है और मेरा व्यायाम.
पति मेरा उपयोग सायरन की तरह करते हैं. पत्नी फोन पर लगी है या श्रृंगार में तल्लीन है. बार-बार मुझे बजाकर पति यह जतलाना चाहते हैं कि बहुत हो चुका.
दिल्ली में ब्लूलाइन बसों के चालक मेरा उपयोग एक ज्योतिषी की तरह करते हैं. मुझे बजाकर वो सामने वाले को आगाह करते हैं कि मृत्यु के ग्रह उसपर मंडरा रहे हैं. अगर वो रास्ते से नहीं हटा तो उसके शरीर का बस के नीचे आना और आत्मा का बादलों के पार चला जाना तय है.
कई अनाड़ी मेरा इस्तेमाल 'ट्रैफिक क्लीनर' के रूप में करते हैं. सैकड़ों गाड़ियों के जाम में वो मुझे बजाते चले जाते हैं. उन्हें लगता है मेरी दिव्य ध्वनि से जाम हट जाएगा.
अमीरजादे मेरा इस्तेमाल शक्ति प्रदर्शन के लिए करते हैं. उन्हें पता है अपने बल पर जीवन में कुछ कर पाना थोड़ा मुश्किल है. तो बाप की गाढ़ी या काली कमाई से खरीदी गाड़ी में मुझे बजाकर थोड़ा रौब जमा लिया जाए.
तरह-तरह के उपयोगों और दुरुपयोगों के मध्य मेरी आवाज़ मेरी अपनी ही आवाज़ में दबकर रह जाती है. पर आज मौका मिला है. बस एक बात कहना चाहता हूँ.
हालांकि मैं बजने के लिए ही पैदा हुआ हूँ, पर मुझे इतना न बजाया करें. मेरी आवाज़ से आस-पास का ही नहीं, आपके दिमाग के अन्दर का शोर भी बढ़ता है. और जिस दिन यह शोर सीमा से बाहर चला जाएगा, कोई भी आपकी बजाकर चला जाएगा. मुझे बजाते-बजाते आप खुद ही बज जाएंगे.
Sunday, July 03, 2011
I love quoting myself - 5
- In advertising, clients expect you to get orange juice from an egg. What makes it trickier is that they hand you a boiled egg.
- इंडिया टीवी ने घोषणा कर दी है कि ऐश्वर्या को जुड़वा बच्चे होंगे. ये खोजी पत्रकार एक दिन गर्भधारण विशेषज्ञ डॉक्टरों और ज्योतिषियों का धंधा चौपट करके छोड़ेंगे.
- ये बादल, ये गहराता अन्धेरा. मानो अब तो यह बारिश सैलाब लेकर ही आयेगी. पर कहीं दिल में यह शुबहा भी है कि यह मादक मंजर कहीं उन रिश्तों की तरह तो नहीं जो दिलों में ख़्वाब तो कई जगाते हैं, पर अंत में इंतज़ार के अलावा कुछ हाथ आता नहीं.
- बदतमीजी अगर तमीज के साथ की जाए तो ज़ायका ही बदल जाता है.
- Our government encourages starving, discourages fasting.
- The best thing about our government is that it uses non violence to deal with violent people and uses violence to deal with non violent people.
- हाथ से बर्तन फिसला और मेरे फ्रिज ने पलक झपकते क्लियोपैट्रा की तरह अंग-प्रत्यंग में दुग्धस्नान किया.
- जब सवारी उल्लू हो तो लक्ष्मीजी कैसे-कैसे लोगों के पास जायेंगी !
- The addiction to alcohol may cost you your liver. But the addiction to monthly salary may cost you your dreams.
- 1. Satya Sai Baba 2. Osama Bin Laden 3. ........... ?
- Men call women ‘ the weaker sex’. Weaker than whom?
- आप सुबह साढ़े तीन बजे ऑफिस में पड़े हैं, घर जाने के लिए बेताब हैं, और एक भले इंसान ने ऊंचे स्वर में स्पीकर्स पर गाना लगा दिया है - "आज जाने की जिद्द ना करो....आज जाने की जिद्द ना करो..."
- Women feel attracted to tigers who can live like lambs after marriage.
- I've heard so many times - 'You are a guy and you don't like cricket!!' Well, I've liked cricket twice, in Lagaan and in Iqbal.
- थप्पड़ से नहीं, नक़ली रंगों से डर लगता है साहब!
- ये इश्क नहीं आसान इतना तो समझ लीजै.
दुनाली की गोली है, बिन पानी गटकनी है.
- मिर्ज़ा आलोक - Sometimes you want to feel so quite that even your thoughts disturb you.
Tuesday, June 28, 2011
Sunday, June 26, 2011
Friday, June 24, 2011
Wednesday, June 22, 2011
Tuesday, June 21, 2011
Monday, June 20, 2011
Sunday, June 19, 2011
Wednesday, June 08, 2011
Saturday, May 28, 2011
Thursday, May 26, 2011
'सैयां मिलल बा सिपहिया' गीत का भावार्थ
'शीला की जवानी' और 'मुन्नी बदनाम हुई' जैसे सुपरहिट उत्तेजक गीतों के भाव को पाठकों के सामने लाने के बाद अब लेखक ने भोजपुरी गीतों के मर्म को टटोलने का निर्णय लिया है. हिन्दी के बढ़ते वर्चस्व (dominance) के कारण प्रादेशिक भाषाओं को हमेशा अपने अस्तित्त्व पर मंडराते खतरे की शिकायत रही है. साथ ही भोजपुरी संगीत पर हमेशा अश्लीलता का लांछन लगाने के कारण इस मधुर प्रादेशिक भाषा पर ख़तरा और भी संगीन हो गया है. ऐसे में आवश्यक हो गया है कि भोजपुरी पृष्ठभूमि के बुद्धिजीवी आगे आकर भोजपुरी संगीत का वास्तविक मर्म सभी के सामने लाएं. अश्लीलता की झीनी चदरिया के भीतर छुपे गहन साहित्यिक अर्थ को उजागर करें.
भावार्थ पढ़ने से पहले कृपया इस गीत का भरपूर आनंद लें. अगर इस गीत को देखते समय महिलाएं आपके साथ हों, तो उनकी प्रतिक्रया जानने के लिए बार-बार उनके चेहरे को ना देखें. लेखक का परम विश्वास है कि वो इस गीत को आपसे भी ज्यादा भाव-विभोर होकर देख रही हैं.
भावार्थ:
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे - २ बार
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे
गीत की शुरुआती पंक्तियाँ सुनकर यह अहसास होता है कि यह एक स्त्री की अपने अतिठरकी पति की हरकतों से जनित व्यथा की गाथा है. परन्तु यह तो सिर्फ आभासी अर्थ है. वास्तव में इस गीत के निर्दोष शब्दों के पीछे एक गहरा सामजिक व्यंग्य छुपा है. यह भोली-भाली जनता जनता की निकम्मी पुलिस से होने वाली परेशानी का संगीतमय चित्रण है. 'छुच्छे' शब्द का मतलब खाली होता है. अर्थात हमारी पुलिस बेमतलब के अपराधियों को धमकाने का नाटक करती है पर उनपर नियंत्रण करने लायक शक्ति नहीं रखती. यह आम जनता की बैरी है, गुनाहगारों की नहीं.
कब्बो ऊपर करे, कब्बो नीचे करे
कब्बो दाएं करे, कब्बो बाएँ करे
कब्बो दिनवा करे, कब्बो रतिया करे
कब्बो देखि रहे बन्दूक ताने खड़े
इश्श्श...
जान मारे हमारी कसइया
छुच्छे फायरिंग करे
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे
इन पंक्तियों के सुनने से पुनः आभास होता है कि अतिकामुक पति अपनी उत्तेजना को अभिव्यक्त करने के लिए उस स्त्री के साथ हर तरह की शारीरिक हरकत कर रहा है. परन्तु गहराई में जाने पर पता चलता है कि ये शब्द पुलिस द्वारा की जाने वाली निरर्थक गतिविधियों पर प्रकाश डाल रहे हैं. वो अपराधियों को पकड़ने के लिए कोई ठोस कदम तो उठाती नहीं, बस ऊटपटांग हरकतें करके व्यस्त दिखने की कोशिश करती है.
बोर्डर ना जाए कब्बु घर ही रहे
झुट्ठो लड़ाई खाली हमसे lade
डरिहा न जानके भतार तू ही सिपहिया
तोड़ती है गतर गतर सखी तोर देहिया
हाय ज़ालिम करे दुरगतिया
छुच्छे फायरिंग करे
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे
अब पुलिसवालों की कायरता पर सवाल उठाया गया है. वह बड़े अपराधियों से लड़ती नहीं; बस असहाय जनता पर मर्दानगी दिखाती है. ऐसे घरघुसना (घर में घुसे रहने वाले) सुरक्षाकर्मियों से लोगों का जीना मुहाल हो गया है.
कब्बो नलवा दिखाए, कब्बो घोड़वा दिखाए
कब्बो टिकली पे ज़ालिम निशाना लगाए - २ बार
कर देल हालत हाय दैया पानी-पानी
ठप्पा लगाए करे मनमानी
हरदम कराए ताता-थैया
छुच्छे फायरिंग करे
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे
यहाँ पुलिसवालों की हरकतों का नाटकीय चित्रण है. वह अपनी बन्दूक से विचित्र हरकतें करके जनता में भय डालने का प्रयास करती है. पर भूल जाती है कि उसका कर्त्तव्य लोगों को भयरहित करना है, भयभीत करना नहीं. निहत्थे लोग उसकी उँगलियों पर नाचते हैं और अपराधी उसे नचाते हैं.
यह गीत एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक व्यंग्य है. मनोरंजक शब्दों के पीछे पीड़ित जनता की व्यथा है. 'छुच्छे' शब्द का काफी सुन्दरता से प्रयोग हुआ है. जब नायिका पूरी ताक़त और जज्बातों से 'छुच्छे' शब्द बोलती है तो हम अपना अंतर्मन टटोलने पर मजबूर हो जाते हैं कि हमारी पुलिस व्यवस्था इतनी 'छुच्छी' क्यूँ है!
लेखक: आलोक रंजन
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Friday, May 20, 2011
Thursday, May 19, 2011
Wednesday, May 04, 2011
'दम मारो दम' गीत का भावार्थ
प्रस्तुत फिल्मी गीत कला और साहित्य के क्षेत्र में निरंतर हो रहे नक़ल और बलात्कार के अद्भुत समन्वय को प्रदर्शित करता है. शीला और मुन्नी जैसे सुपरहिट आयटम गीतों की सफलता की चाह रखने वाले गीतकारों और संगीतकारों ने अपने आयटम गीतों से बाज़ार को भर दिया है. नक़ल की इस दौड़ में 'दम मारो दम' गीत एक शर्मनाक उदाहरण प्रस्तुत करता है जो आने वाले कई वर्षों तक श्रोताओं के मन में मतली (vomit) करने की इच्छा उत्पन्न करता रहेगा. साथ ही साथ इसने श्रोताओं के दिल पे राज करने वाले 'हरे कृष्णा हरे राम' के मौलिक (original) 'दम मारो दम' गीत के साथ क्रूरतापूर्वक साहित्यिक बलात्कार भी किया है.
धन्य है वो गीतकार जिसने एक ही गीत में दो जघन्य अपराधों को इतनी सफाई से अंजाम दिया है. गीतकार के द्वारा पहले लिखे गए गीतों का मैं कायल रहा हूँ. पता नहीं किस मज़बूरी में आकर उसने ऐसे गीत की रचना की! कहीं उन्होंने श्री रामगोपाल वर्मा जैसे दिग्गजों के साथ उठना बैठना तो शुरू नहीं कर दिया.
Aa.aa a..aw..
Aa..aaa..aa aww...
Hey..!!
Phir Dekh Raha Hai
Aaj Aankh Sek raha hai
Kal haath Seekega
Aaj Dheel Choda Raha hai
Kal Khud hi tokega
Aaj Mere liye Chair kheench raha hai
Kal Meri Skirt Kheenchega
Kheeche ga ki nahin ? hmm... ?
गीत की शुरुआत एक स्त्री द्वारा यौन संसर्ग के भूखे पुरुषों पर टिप्पणी से होती है. एक नज़र में लगता है कि ये शब्द पुरुष की मानसिकता का गहरा मनोवैज्ञानिक शब्द उजागर करते हैं. फिर अगले ही पल अहसास होता है कि वह स्त्री खुद ही ज़्यादा इच्छुक है. वह अपनी इच्छा का दायित्व पुरुष पर लादते हुए अपने भावनाओं को बड़े ही सस्ते और छिछोरे ढंग से व्यक्त करती है. पर धैर्य रखें! सस्तेपन और छिछोरेपन के इससे भी ज्यादा ऊंचे शिखर आगे के शब्दों में स्पर्श किये गए हैं.
Aakkad bakkad Bambay bo
Aassi Nabbe Poore Sau
Sau rupaye ka Dum jo lun
Do sau gum ho udan Chhu
Phir kyun main tu
kar rahe Tain Tu....
इन शब्दों का न कोई मतलब है ना इस सन्दर्भ में सार्थकता. बस इतना पता चलता है कि नायिका की मनोवैज्ञानिक दशा बड़ी खराब है. नशा करके वो अपनी पीड़ा भूलने का प्रयत्न करती है.
Unche se uncha banda,
potty pe baithe nanga..
Phir kaahey ki society,
saali kaahey ka paakhanda..
Bheje se kaleje se, kaleje ke khaleje se
Mit jaaye hum, maroge toh jiyo bhi dum maaro dum.
ये शब्द घटियापन के माउंट एवरेस्ट हैं. कई लेखकों को लगता है कि मल, मूत्र और सेक्स से सम्बंधित बेमतलब की टिप्पणियाँ करने से उनके लेखन में गहराई आती है. उनके लेखन से ऐसा महसूस होता है कि सड़क की गंदी नाली खुद में समुद्र जैसी विशालता की कल्पना कर बैठी है. पर सच्चाई यह है कि नाली में गोते लगाकर आप मोती नहीं पा सकते, सिर्फ पैर गंदे कर सकते हैं.
यहाँ गीतकार की बात से भी ऐसा ही लगता है. वो चाहता क्या है? यही कि ऊंचे बन्दे शौच में कपडे पहनकर बैठें? क्या इससे सोसायटी ज़्यादा प्रामाणिक और बेहतर बन जायेगी? क्या सोसायटी का पाखण्ड इससे कम हो जाएगा? शौच में नंगे बैठने से सोसायटी के पाखण्ड का क्या सम्बन्ध है - यह रहस्य कई श्रोताओं के सामने है.
Dum Maaro Dum
Mit Jaaye Ghum
Bolo Subha Shaam
Hare Krishna Hare Krishna
Hare Krishnaa
Hare Ram
Dum Maro Dum
Mit Jaye Gham
Bolo Subha Shaam
Hare Krishna..Hare Krishna
Hare Krishnaa
Hare Krishna..Hare Krishna
Hare Krishnaa
Hare Ram
Duniya ne hum ko diya kya?
Duniya se hum ne liya kya?
Hum sab ki parva karen kyun?
Sub ne hamaara kiya kya?
Aa aa..aaaa..aaa..a
aa..aaa...aaa..aaa
Dum Maaro Dum
Mit Jaye Gham
Bolo Subha Shaam
Hare Krishna..Hare Krishna
Hare Krishnaa..Hare राम
यहाँ हम पुराने 'दम मारो दम' गीत के शब्द सुनते हैं. थोड़ा आराम महसूस होता है. लगता है सूअर के बाड़े से निकलकर किसी साफ़-सुथरे बगीचे में आ गए हैं. यहाँ अंगरेजी के प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन द्वारा एक युवा लेखक पर की गयी टिप्पणी याद आती है - 'तुम्हारी रचनाएँ मौलिक भी हैं और बेहतरीन भी. पर जो हिस्सा मौलिक है वो बेहतरीन नहीं है. और जो हिस्सा बेहतरीन है वो मौलिक नहीं है.' ठीक उसी तरह इस गीत के जो शब्द अच्छे हैं वो मौलिक नहीं है, और जो शब्द मौलिक हैं वो अच्छे नहीं हैं.
Kya hai kahani Tere paap ki
Topi Hai pyare Har Naap ki
Khuli hai supermarket Baap Ki
Kya hai Pasand kaho aap ki
Andar ke bandar se ho Guftagu si ek baat
Thi jusjtu si ek baat
ho Guftgu si ek baat
फिर से इन शब्दों के साथ हम सूअर के बाड़े में प्रवेश करते हैं. इन्हें सुनकर लगता है मानो कोई सड़कछाप वेश्या किसी अय्याश अमीरजादे को उकसा रही है. कंडोम और पुरुष जननांगों के लिए बेहूदी उपमाओं का इस्तेमाल करके यहाँ गीतकार भद्दी अश्लीलता पर अपनी पकड़ को दर्शाता है. कभी-कभी तो लगता है कि कहीं वो हिन्दी अश्लील साहित्य के पुरोधा श्री मस्तराम का पुनर्जन्म तो नहीं!
Phir kyun main tu
kar rahe Tain Tu....
Unche se uncha banda,
potty pe baithe nanga..
Phir kaahey ki society,
saali kaahey ka paakhanda..
Bheje se kaleje se, kaleje ke khaleje se
Mit jaaye hum, maroge toh jiyo bhi dum maaro dum.
Dum Maaro Dum
Mit Jaae Gam
Bolo Subah Shaam
Hare Krishna..Hare Krishnaa
Hare Krishnaa..Hare raam
Dum Maaro Dum
Mit Jaye Gham
Bolo Subha Shaam
Hare Krishna..Hare Krishna
Hare Krishnaa..
Hare Krishna..Hare Krishna.
Hare ram
Aa aa..aaaa..aaa..a
यहाँ फिर से हम गीत के शब्दों को सुनते हैं और मन ही मन शुक्रिया अदा करते हैं कि गीत ख़त्म हुआ. पर साथ ही एक प्रश्न की शुरुआत हमारे मन में होती है. हमारा संविधान मनुष्यों के साथ होने वाले बलात्कार पर कड़ी सज़ा देता है. पर साहित्यिक रचनाओं के साथ होने वाले बलात्कार पर कौन सजा देगा?
कॉपीराईट: आलोक रंजन alok160@gmail.com (कृपया लेखक का श्रेय चुराने का कष्ट ना करें)
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शीला की जवानी' का भावार्थ 'आयटम-आचार्य' की आवाज़ में सुनें!http://www.facebook.com/video/video.php?v=474080662539&comments
अगर बाबा रणछोड़दास चांचड़ की जगह चुलबुल पांडे होते! http://www.facebook.com/note.php?note_id=181632775215109
Thursday, April 28, 2011
Yesterday death kissed me and then ditched me
by Alok Ranjan on Sunday, April 24, 2011 at 3:15pm
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Just 24 hours back I experienced something which may seem scary to some and feels like just a scary dream to me right now. You may call me lucky that I am alive to tell you the story.
Yesterday, on April 24, 2011,I reached Rishikesh, with nothing but a small backpack. It was 3:30 am, and I knew only one thing. I had to go to Ram Jhula where all the hotels and dharmashalas are located. It was too early and none of them were open. So I decided to spend one hour on the cemented bank of the Ganges.
What a lovely experience! Cool breeze, silence and nothing to enter your ears except the sweet sound of the flowing river. Well, this sweet sound was going to turn into cacophony a few hours later.
I meditated there for one hour. It made me feel like an Indian yogi who has renounced everything and is busy finding the heavenly pleasure within him.
Then I checked into a hotel, put my stuff there and started roaming around the small city with a small bag. In the noon, I decided to spend a few hours on the beautiful bank of the river. I could see florescent grey sand, shiny rocks and green water speeding like an army of centipedes.
I sat on a small rock, pulled out my drawing book and started drawing random stuff. There were families, couples and sadhus taking bath with ultimate ease. It brought me some courage and I decided to go into the water.
The water was cold. I kept going in and coming out. But I couldn’t come out this time. I was enjoying myself waist deep in the water and took one step ahead. Just a small step, ignorant of the huge pit waiting for me.
That step changed the whole quality of the experience. I was fluttering like a caged bird in the water, trying to get my foot on solid ground or to keep myself above the surface of the water. It didn’t help much since I have never tried my hand at swimming before. I also tried to learn swimming but there was no enough time. I was frustrated, helpless and confused.
Confused because too many thoughts were stricking my head:
‘What’s this happening? Am I dying?’
‘No way. I can’t be dying. Death is something which happens to others, not to me.'
'Palmistry says I have a strong line of life. Idiots! Now I know palmistry is bullshit.'
‘Oh, no! I am going to die. It’s death. Pure death. I am here for just a few seconds more.’
Then a blinding white light flashed in my eyes and a final thought came into my head:
'How is my mother going to feel when she comes to know (if she comes to know) that I am gone forever?'
Then the light and the thought vanished. I gripped my nose as the final effort to keep myself afloat, and lost my consciousness.
Have you seen Danny Boyle’s 127 HOURS? These 127 seconds were not less intense than those 127 hours the hero had spent with his hand under the rock.
When I came back to senses, I was lying on the sand like an injured snake. I had the minimal sense of what was going around. Many people had surrounded me. I had to work hard just to open my eyes for a second. I could hear what they were saying for a moment. Then I used to go blank. My entire body was aching.
That happens when the amount of GANGAJAL exceeds the amount of blood in your body.
I started vomiting buckets of water. It helped me a lot. I also had a momentary hope that I would be okay in a few minutes with the help of sheer willpower. But sometimes willpower also needs a little help from physical power which I had lost entirely.
What happened in the next one hour is in my memory in short flashes. I remember lying on a motor boat, getting into an ambulance with oxygen mask on my nose, and being assisted by two people. Late on I came to know they were Wing Commander Ajay Kishore Mishra and Gaurav Tripathi. Two air force pilots to whom I owe the remaining part of my life completely.
They took me to a hospital where I was given glucose and more oxygen. Doctors checked my pulse rate and blood pressure, and assured that I was out of any serious danger. Then Ajay called up my father and brother, telling them the entire story. It scared them and worried them. My sister, brother-in-law and my mother came to know about it. I started getting calls but I was in no condition to receive them.
After one hour of helpless and senseless lying, I finally got some strength to open my eyes. Ajay and Gaurav had left some fruits for me, promising to come back after a few hours. My father, brother, sister and brother-in-law had gotten their air tickets booked to Delhi.
Like many other government hospitals, there was nobody to attend to me except some bodies lying on the beds around me. One old man was lying on the floor. He seemed to be in deep sleep. He was a victim of NASHAAKHURANAS (they make the travelers on trains or buses smell some intoxicant and rob them of every paisa they have). He had not opened his eyes for three days. One young man was lying on a bed, badly injured with blood scattered on his head and hands. He was beaten up by some goons. But the cops were interrogating him as if he had beaten up the goons and had gotten himself admitted into the hospital for redemption. The third body belonged to another young man. He had just met with a road accident. The doctors and nurses were discussing when to do his post-mortem.
By evening I had gained enough strength to walk a little bit. I went to the male toilet. The dirt out there could relieve anybody of his desire to relieve himself.
Then Ajay and his brother-in-law Bohitesh came to meet me. They told me the entire story as it happened. They saw me beating the water with hands and legs incessantly. First they thought I was swimming in an unusual way. But quickly they realized nobody ever swimmed that way. Then they saw me gripping my nose with fingers and taking a dive. After a few moments my body was floating on the water.
They quickly reached to me and tried to hold me. It was a dangerous thing to do considering the speed of water. Ajay tried to hold me from the back. My body was stiff like a wooden block. They started waving their hands to a rafting boat. The man on the boat quickly reached to me. He was wearing a life jacket which could manage weight up to 150 kg. With his help, my senseless body was brought on the sand.
Quickly people surrounded me. Something interesting to watch, eh! I had lost my pulse and breathing. I looked every inch dead. Some of the onlookers quickly transformed themselves into 'medical experts' and started giving crisp commentary on why it was useless trying to save me.
For five minutes, Ajay and his wife Vani kept trying to push my back and give some first aid therapy. Then my stiff body made its first physical movement. I started vomiting water. The holy water of the Ganges had purified me from inside, and now it needed to come out.
As the water came out, my breathing came back. I also started making some sound. It looked I had chances of staying alive. They got me on a motor boat to cross the river and get to a hospital. The boat was in a nasty mood and its motor broke down in the mid of the river. Another motor boat arrived in a while. I was shifted to it. Ajay and Gaurav were holding my arms. We walked to the ambulance which was one kilometer away. They took help of a cop who seemed disinterested at first citing the fact that he was on a VIP duty. But after some verbal rebuke, he decided to help. There was another stimulant also for his desire to help. He wanted to know what I was carrying in my bag. Maybe he was hopeful that he would find lots and lots of currency notes of 1000 rupees.
People at the government hospital didn’t seem very helpful either. The staffs and attendants refused to touch the stretcher. After all they are paid for doing the extreme hard work of taking their salary on the first day of every month. Doing anything beyond this would look suspicious in the eyes of their superiors.
I have already written what happened in the hospital after that. A very good friend of my brother quickly took a taxi from Delhi . Ashutosh reached there by the night; then we departed for Delhi.
Right now I am staying at his house, looking completely healthy. No symptoms of any physical or psychological damage are visible on my body. But I am feeling weak. It will take me one or two days to get my strength back. Ajay and Gaurav have called me up many times asking about improvement in my health.
As the news is spreading, I am getting calls from my relatives. They are asking only one question: “Why the hell did you go alone?”
Now I feel I just saw a scary dream. But it was no dream. My destiny had put me into the jaws of death and had snatched me back.
You may call it what is known as a ‘Near Death Experience’. I don’t remember anything about what happened during those 15-20 minutes of the loss of consciousness. I don’t remember my soul being pushed into an endless tunnel, seeing weird lights and meeting any angel who said to me, “Alok, your time is not over yet. Go suffer the world for a few decades more.”
But I remember the extreme helplessness I felt when I was trying to save myself from drowning. Now I know I am as near to death as anybody else. Death is not impartial to somebody just because he is young, healthy and slightly cocky about his imaginary omnipotence.
Generally such incidents bring a permanent shift in the paradigms of people who experience them. They start looking at life in a completely new way. They lose the fear of death, become more loving towards others and start thinking more about what is really important and unimportant in life.
I have experienced no such change in my thinking so far. But I am hopeful. If such a rare experience doesn’t bring any valuable change in me, it would stay in my head just as an unforgettable but meaningless event.
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