आजकल एक फैशन सा चल पडा है. भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन करने का फैशन. लोग बिना सोचे-समझे भ्रष्टाचार का आमूल नाश करने पर तुल गए हैं. आखिर करें भी क्यों नहीं? इससे तुरंत लोकप्रियता जो मिल जाती है.
पर कोई यह सोचना नहीं चाहता कि भ्रष्टाचार वाकई देश के लिए अच्छा है या बुरा. बस एक ही रट लगा राखी है - भ्रष्टाचार हटाओ, भ्रष्टाचार हटाओ. अरे भाई, क्यों हटायें हम भ्रष्टाचार? बेचारे भ्रष्टाचार ने बिगाड़ा ही क्या है?
भ्रष्टाचार से गरीबी हटती है. जिस इंसान के पास कल तक बस के किराए के पैसे नहीं होते थे, आज वह करोड़ों के बैंक बैलेंस, गाड़ियों और बंगलों का मालिक है. और यह चमत्कार होता है सिर्फ एक चुनाव जीतने के कारण. जब देश का राजा ही अमीर नहीं होगा, तो प्रजा कैसे अमीर होगी?
लोगों की शिकायत है कि देश के लाखों करोड़ों रुपये विदेशी बैंकों में जमा हैं.अब अपने देश के बैंकों का तो भरोसा है नहीं. मंदिर में भी धन सुरक्षित नहीं है. यहाँ कोई सुरक्षित है तो संसद और 5 स्टार होटलों में गोलियां बरसाने वाले आतंकवादी. ऐसे में अगर हमारे दूरदर्शी राजनेताओं ने देश का थोड़ा पैसा बाहर सुरक्षित रख ही दिया तो इसमें गलत क्या है!
यह तो रही राजाओं की बात; अब आते हैं प्रजा तक. भ्रष्टाचार आम आदमी की ज़िंदगी को भी आसान बनाता है.
आम आदमी को गैस सिलिंडर के लिए लाइन में नहीं लगना पड़ता. ट्रेन के महंगे टिकट नहीं खरीदने पड़ते. चालान के पैसे नहीं भरने पड़ते. छोटे-मोटे अपराधों के लिए जेल नहीं जाना पड़ता. और तो और भ्रष्टाचार सरकारी कर्मचारी की कार्यक्षमता को बढाता है. ज़रुरत है बस थोड़ा एक्स्ट्रा खर्च करने की.
एक्स्ट्रा खर्च करने के लिए धनी बनना आवश्यक है. हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है - 'धनमेवं बलं लोके'. अर्थात इस लोक में धन ही बल है. भ्रष्टाचार लोगों को धनी बनने के लिए प्रेरित करता है. अगर देश में अमीर और गरीब के साथ समान सलूक किया जाए तो अमीर बनना कौन चाहेगा?
कल हमारा देश अगर फिर से सोने की चिड़िया बन जाता है, तो इसका एकमात्र श्रेय जाएगा भ्रष्टाचार को. अतः ज़रुरत है कि हम हरेक स्तर पर भ्रष्टाचार को उचित सम्मान दें. भ्रष्टाचार है तो विकास है, विकास करने की प्रेरणा है.
कॉपीराईट - आलोक रंजन
2 comments:
jai ho
आपकी बातों से हमें भी भ्रष्टाचार करने की प्रेरणा मिल रही है लेकिन क्या करें मास्टरगिरी की नौकरी में इसका स्कोप ही नहीं है।
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