हम लोग कई बार राजा महाराजाओं की ज़िंदगी से काफी प्रभावित हो जाते हैं। उनके बारे में सोचते हैं तो लगता है क्या लाइफ थी इनकी? इतनी ताक़त, इतना धन, इतना ऐश्वर्य! भाई, ज़िंदगी तो वो जीते हैं। हम मिडिल क्लास टाइप लोग क्या जानें कि शाही ज़िंदगी के ठाट-बाट क्या होते हैं। लेकिन अगर ध्यान से उनकी ज़िंदगी को देखें तो शायद हमारा नजरिया बदल सकता है। चलिये, प्राचीन इतिहास से नज़र डालते हैं।
महाभारत काल से शुरू करते हैं। इस समय के तीन प्रमुख किरदारों को लेते हैं: पांडव, कौरव और कृष्ण। पांडवों के पिता को एक अजीब बीमारी थी इसके कारण वो उनके बचपन में चल बसे। उसके बाद से बचपन से ही उनके चचेरे भाइयों ने उनको मारने की कोशिशें शुरू कर दी। भीम जब छोटे थे तो उनके खाने में जहर मिलाकर उनको नदी में बहा दिया गया, पर वो बच गए। उसके बाद लाक्षागृह में उनको जलाकर मारने की कोशिश की गई। जब बड़े हुये तब संपत्ति के नाम पर खांडववन नाम का जंगल-झाड दिया गया। उन्होने बड़े परिश्रम से वहाँ एक सुंदर शहर बसाया। लेकिन जुए में वो सब हार गए। उनकी पत्नी को सबके सामने बेइज़्ज़त करने की कोशिश की गई। तेरह साल जंगल में भटकने के बाद जब वापस आए तो उनको उनकी संपत्ति वापस नहीं दी गई। संपत्ति वापस लेने के लिए युद्ध किया तो उसमें उनके सारे बेटे अश्वत्थामा के हाथों रात में मारे गए।
कौरवों की ज़िंदगी तो बड़ी शानो-शौकत वाली थी, पर युद्ध में उन सबकी मौत हो गई। उनके परिवार का एक वारिस न रहा सिवा युयुत्सु के। उनके माँ-बाप को भगवान ने सौ बेटे दिये थे, पर सब के सब भारी जवानी में ही चल बसे।
कृष्ण के माता-पिता को उनके ही मामा ने जेल में डाल दिया था। कृष्ण के पहले उनके सात भाई पैदा हुये थे जिन्हें मामा ने पैदा होते हुये ही मार डाला। उनको दूर एक गाँव में पाला गया लेकिन उनकी हत्या की कोशिशें होती रहीं। अगर उनमें दैविक शक्ति नहीं होती तो वो आत्म-रक्षा भी नहीं कर पाते। जब वो बड़े हुये तो उनकी ज़िंदगी अच्छी रही। लेकिन उनकी मृत्यु जंगल में एक शिकारी के तीर से हुई। उनकी मृत्यु से पहले उनके सारे यादव भाई सत्ता के मद में पागल हो गए थे, और आपस में ही लड़ने लगे थे। इससे कृष्ण काफी दुखी थे।
अब आते हैं महान राजा अशोक के परिवार पर। उसे चांडाशोक कहते थे क्योंकि राजगद्दी पाने के लिए उसने अपने सौ भाइयों-संबंधियों का खून कर दिया था। कलिंग युद्ध के बाद उसका हृदय-परिवर्तन हुआ और उसने खून-खराबा तो बंद कर दिया। लेकिन उसकी एक रानी तिष्यरक्षिता उसके लायक बेटे कुणाल से जलती थी, इसलिए उसने षड्यंत्र करके उसकी आँखें फुड़वा दी थीं। इतना शक्तिशाली राजा बिना किसी योग्य उत्तराधिकारी के मरा।
मुगलों की ज़िंदगी में भी आपसी खून-खराबा बेमिसाल था। शाहजहाँ और औरंगजेब का किस्सा लेते हैं। शाहजहाँ के चार बेटे और दो बेटियाँ थीं। औरंगजेब जब दिल्ली फतह करके आया तो उसकी बहन रोशन आरा ने उसका साथ दिया था। औरंगजेब ने पहला काम ये किया कि उसने अपने बाप को जेल में डलवा दिया। डेढ़ साल बाद उसका बड़ा भाई दारा शिकोह पकड़ा गया। दारा को चाँदनी चौक में हाथी के पैरों से बांध कर गली-गली में घुमाया गया। जेल में किसी ने दारा का कत्ल कर दिया। जब दारा का सिर औरंगजेब के पास लाया गया तो उसकी बहन रोशन के दिमाग में एक आइडिया आया। अगले दिन सुबह जब शाहजहाँ उठा तो उसने देखा कि उसके बेटे औरंगजेब ने उसके लिए एक तोहफा भेजा है। उसने तोहफा खोला तो देखा कि उसमें उसके प्यारे बेटे दारा का सिर है। ऐसा कितने परिवारों में होता है कि एक बहन अपने भाई को सलाह देती है कि वो अपने दूसरे भाई का सिर अपने पापा को ब्रेकफ़ास्ट के समय गिफ्ट के रूप में भेजे। इस घटना के कई साल बाद औरंगजेब ने अपनी प्यारी बहन रोशन को भी जहर खिलाया जिससे वो डेढ़ महीने तक तड़प-तड़प कर मरी। फिर उसकी लाश को उसी के बनाए पार्क में दफना दिया। आज भी वो पार्क दिल्ली में है। फॅमिली-लव की ऐसी स्टोरी तो एकता कपूर के टीवी सोप में भी नहीं मिलती।
आजादी के बाद नेहरू परिवार ही हमारा शाही परिवार रहा है। इस परिवार के बारे में ज़्यादा बोलने की ज़रूरत नहीं है। इंदिरा की हत्या हुई, संजय हादसे में मारे गए (वैसे कहते हैं ये एक हत्या थी), और फिर राजीव की भी हत्या हुई। उनके पास वाडरा जैसा दामाद है और राहुल गांधी जैसा ओजस्वी उत्तराधिकारी बेटा है।
हम में से कितनों के परिवार हैं जहां ऐसी वीर रस की घटनाएँ घटती हैं? उल्टे हम होली दीवाली पर मिलते हैं, खुशियाँ मनाते हैं। हमें इस बात का डर नहीं सताता कि हमारा अपना भाई हमें बैकुंठ लोक पहुंचाने की व्यवस्था कर रहा है। इसलिए बेहतर है कि राजा-महाराजाओं की कहानियाँ पढ़ें, लेकिन उनके जैसी ज़िंदगी की तमन्ना करने से पहले थोड़ा सोच लें।
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