बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। ‘बेटा, बोर्ड अच्छे नंबर से पास कर लो, फिर आराम करना।‘ ‘बेटा, बस अच्छे कॉलेज में एड्मिशन हो जाये, फिर लाइफ की टेंशन खत्म।‘ ‘यार, बस एक बार campus selection हो जाये, फिर तो तेरी चांदी है। आराम करते रहना।‘
सब कुछ हो गया। बोर्ड पास कर गए, कॉलेज भी खत्म हो गए, जॉब करते हुये सालों बीत गए, लेकिन अभी तक वो ‘आराम करने’ वाला फेज नहीं आया। जिन्होने EMI पर मकान खरीद रखा है, उनकी ज़िंदगी में अगले बीस सालों तक तो आयेगा भी नहीं।
तो फिर बचपन से ये क्यों बताया जाता है कि वो वाला काम कर लो, उसके बाद आराम ही आराम है। हमारे बाप-दादाओं ने हमें ये झूठ बताया; और अपने बेटे-पोतों को भी हम ये ही झूठ बताएँगे। हम ये क्यों नहीं मान लेते कि ज़िंदगी में समस्याएँ मुंबई की लोकल ट्रेन की तरह हैं। हर 2-3 मिनट पर आती ही रहेंगी। तुम लाख दिमाग लगा लो, एडी-चोटी का पसीना एक कर लो, समस्याएँ कभी खत्म नहीं होने वाली।
बस एक चीज खत्म हो सकती हैं; वो है समस्याओं के खत्म होने की आशा। और जब ये आशा खत्म हो जाती है तो मन में एक अनोखी शांति भरने लगती है। भविष्य के किसी आरामदायक पल की तलाश छूटने पर इसी पल में अपने-आप एक सुखद आराम भर जाता है। जिसे सालों से खोज रहे हैं, वो अपने-आप प्रकट हो जाता है।
फिर लोग हमसे पूछते हैं, “तुम इतने relaxed कैसे रह लेते हो? लगता है, तुम्हारी लाइफ में प्रोब्लेम नहीं है।“
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