Saturday, February 05, 2011

Client Sevicing


एक प्रेमपत्र


प्रियतमा, 

कैसी हो? खैर, अच्छी ही होगी.

कल सोचने बैठा. फिर लगा तुम्हारे बारे में सोचना चाहिए. आखिरकार तुम मेरी उद्घोषित प्रेमिका हो, और फिर हर प्रेमी का यह फ़र्ज़ है कि अपने जीवन का बड़े से बड़ा हिस्सा अपनी प्रेमिका के बारे में चिंतन करने में लगाए.

फिर मैं सोचने लगा अपने जीवन में आये उन बदलावों के बारे में जो तुम्हारे पदार्पण के बाद आये हैं. सच में, कितनी बदल गयी है मेरी ज़िंदगी! कितनी सीमित हो गयी है मेरी दुनिया! पहले मेरी ज़िंदगी में कितनी निरर्थक चीजें हुआ करती थी - दोस्त, आज़ादी, खुशी, अपने लिए समय और न जाने क्या क्या? अब मेरी ज़िंदगी में सिर्फ दो चीजें हैं - तुम और तुम्हारा प्यार.

तुम्हारा प्रेम भी बड़ा अनूठा है. थोड़ा हटकर है. यह प्रेम कुछ ऐसा ही है जैसा एक कंजूस सेठ अपनी तिजोरी से करता है. सेठ तिजोरी को तहे-दिल से प्यार करता है, उसे अपना सर्वस्व समझता है. किन्तु इस बात का ख्याल भी रखता है कि कहीं किसी और की नज़र उस तिजोरी पर ना पड़ जाए. अपनी तिजोरी का धन बांटने से पहले वो स्वर्गवासी होना पसंद करेगा. कुछ ऐसा ही तुम्हारे साथ है.

अगर इस दुनिया में कोई मेरी खुशी चाहता है तो वो तुम हो. तुम शायद अपनी खुशी से भी ज्यादा मेरी खुशी देखना पसंद करोगी. पर यहाँ एक छोटा सा पेंच है. तुम मुझे खुश तो देखना चाहती हो, पर सिर्फ अपने साथ. प्रलय आ जायेगी अगर तुमने मुझे किसी और के साथ प्रसन्नचित्त देख लिया. तुम्हारी आँखों से तप्त अश्रुओं के जलप्रपात गिरने शुरू हो जायेंगे. तुम्हारे मुख-कमल से अपशब्द सुसज्जित भाषा में तीक्ष्ण उलाहनों की वृष्टि प्रारम्भ हो जायेगी.

सच में सच्चा है तेरा प्यार. कितनों को नसीब होता है ये? पिछले जन्मों में जिन्होंने दुष्कर्मों की सीमा पार कर ली होगी, उन्हीं को इस जन्म में ऐसा प्यार मिलेगा. सभी की पात्रता नहीं होती ऐसी दुर्लभ चीजों के लिए.

तुम्हारे इस प्रेम ने मुझे जितना संतुष्ट और तृप्त किया है शायद किसी और चीज ने नहीं किया. यह तृप्ति  इतनी गहरी है कि कभी कभी ईश्वर  से प्रार्थना करने की इच्छा होती है, "हे नाथ! अब तो बस कर!"

मेरी आँखों से आंसू निकल रहे हैं. पर मैंने हिम्मत और आशा नहीं खोयी है. आस-पास अपने जैसे प्रताड़ितों को देखता हूँ तो लगता है मैं अकेला नहीं हूँ. सभी  प्रेम रोग के शिकार हैं. जब उन्होंने ने मुक्ति की आशा नहीं छोड़ी तो मैं क्यूँ छोडूं?

तुम्हारा और 'सिर्फ तुम्हारा'
- प्रेमी