Thursday, May 26, 2011

'सैयां मिलल बा सिपहिया' गीत का भावार्थ


'शीला की जवानी' और 'मुन्नी बदनाम हुई' जैसे सुपरहिट उत्तेजक गीतों के भाव को पाठकों के सामने लाने के बाद अब लेखक ने भोजपुरी गीतों के मर्म को टटोलने का निर्णय लिया है. हिन्दी के बढ़ते वर्चस्व (dominance) के कारण प्रादेशिक भाषाओं को हमेशा अपने अस्तित्त्व पर मंडराते खतरे की शिकायत रही है. साथ ही भोजपुरी संगीत पर हमेशा अश्लीलता का लांछन लगाने के कारण इस मधुर प्रादेशिक भाषा पर ख़तरा और भी संगीन हो गया है. ऐसे में आवश्यक हो गया है कि भोजपुरी पृष्ठभूमि के बुद्धिजीवी आगे आकर भोजपुरी संगीत का वास्तविक मर्म सभी के सामने लाएं. अश्लीलता की झीनी चदरिया के भीतर छुपे गहन साहित्यिक अर्थ को उजागर करें.

भावार्थ पढ़ने से पहले कृपया इस गीत का भरपूर आनंद लें. अगर इस गीत को देखते समय महिलाएं आपके साथ हों, तो उनकी प्रतिक्रया जानने के लिए बार-बार उनके चेहरे को ना देखें. लेखक का परम विश्वास है कि वो इस गीत को आपसे भी ज्यादा भाव-विभोर होकर देख रही हैं.




भावार्थ: 

सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे - २ बार 
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे

गीत की शुरुआती पंक्तियाँ सुनकर यह अहसास होता है कि यह एक स्त्री की अपने अतिठरकी  पति की हरकतों से जनित व्यथा की गाथा है. परन्तु यह तो सिर्फ आभासी अर्थ है. वास्तव में इस गीत के निर्दोष शब्दों के पीछे एक गहरा सामजिक व्यंग्य छुपा है. यह भोली-भाली जनता जनता की निकम्मी पुलिस से होने वाली परेशानी का संगीतमय चित्रण है. 'छुच्छे' शब्द का मतलब खाली होता है. अर्थात हमारी पुलिस बेमतलब के अपराधियों को धमकाने का नाटक करती है पर उनपर नियंत्रण करने लायक शक्ति नहीं रखती. यह आम जनता की बैरी है, गुनाहगारों की नहीं. 


कब्बो ऊपर करे, कब्बो नीचे करे
कब्बो दाएं करे, कब्बो बाएँ करे
कब्बो दिनवा करे, कब्बो रतिया करे
कब्बो देखि रहे बन्दूक ताने खड़े
इश्श्श...
जान मारे हमारी कसइया 
छुच्छे फायरिंग करे
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे

इन पंक्तियों के सुनने से पुनः आभास होता है कि अतिकामुक पति अपनी उत्तेजना को अभिव्यक्त करने के लिए उस स्त्री के साथ हर तरह की शारीरिक हरकत कर रहा है. परन्तु गहराई में जाने पर पता चलता है कि ये शब्द पुलिस द्वारा की जाने वाली निरर्थक गतिविधियों पर प्रकाश डाल रहे हैं. वो अपराधियों को पकड़ने के लिए कोई ठोस कदम तो उठाती नहीं, बस ऊटपटांग हरकतें करके व्यस्त दिखने की कोशिश करती है. 


बोर्डर ना जाए कब्बु घर ही रहे
झुट्ठो लड़ाई खाली हमसे lade 
 डरिहा न जानके भतार तू ही सिपहिया
तोड़ती है गतर गतर सखी तोर देहिया
हाय ज़ालिम करे दुरगतिया
छुच्छे फायरिंग करे
 सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे

अब पुलिसवालों की कायरता पर सवाल उठाया गया है. वह बड़े अपराधियों से लड़ती नहीं; बस असहाय जनता पर मर्दानगी दिखाती है. ऐसे घरघुसना (घर में घुसे रहने वाले) सुरक्षाकर्मियों से लोगों का जीना मुहाल हो गया है. 


कब्बो नलवा दिखाए, कब्बो घोड़वा दिखाए
कब्बो टिकली पे ज़ालिम निशाना लगाए - २ बार
कर देल हालत हाय दैया पानी-पानी
ठप्पा लगाए करे मनमानी
हरदम कराए ताता-थैया
छुच्छे फायरिंग करे
 सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे

यहाँ पुलिसवालों की हरकतों का नाटकीय चित्रण है. वह अपनी बन्दूक से विचित्र हरकतें करके जनता में भय डालने का प्रयास करती है. पर भूल जाती है कि उसका कर्त्तव्य लोगों को भयरहित करना है, भयभीत करना नहीं. निहत्थे लोग उसकी उँगलियों पर नाचते हैं और अपराधी उसे नचाते हैं. 

यह गीत एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक व्यंग्य है. मनोरंजक शब्दों के पीछे पीड़ित जनता की व्यथा है. 'छुच्छे' शब्द का काफी सुन्दरता से प्रयोग हुआ है. जब नायिका पूरी ताक़त और जज्बातों से 'छुच्छे' शब्द बोलती है तो हम अपना अंतर्मन टटोलने पर मजबूर हो जाते हैं कि हमारी पुलिस व्यवस्था इतनी 'छुच्छी' क्यूँ है! 

लेखक: आलोक रंजन 

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अन्य रचनाएं: https://www.facebook.com/alok160?sk=notes 
गब्बर सिंह' का चरित्र चित्रण: http://www.facebook.com/note.php?note_id=168951949816525
'मुन्नी बदनाम हुई' गीत की सप्रसंग व्याख्या: http://www.facebook.com/note.php?ote_id=161886377189749
'शीला की जवानी' गीत का भावार्थ: http://www.facebook.com/note.php?note_id=160894570622263
शीला की जवानी' का भावार्थ 'आयटम-आचार्य' की आवाज़ में सुनें!http://www.facebook.com/video/video.php?v=474080662539&comments




Wednesday, May 04, 2011

'दम मारो दम' गीत का भावार्थ

प्रस्तुत फिल्मी गीत कला और साहित्य के क्षेत्र में निरंतर हो रहे नक़ल और बलात्कार के अद्भुत समन्वय को प्रदर्शित करता है. शीला और मुन्नी जैसे सुपरहिट आयटम गीतों की सफलता की चाह रखने वाले गीतकारों और संगीतकारों ने अपने आयटम गीतों से बाज़ार को भर दिया है. नक़ल की इस दौड़ में 'दम मारो दम' गीत एक शर्मनाक उदाहरण प्रस्तुत करता है जो आने वाले कई वर्षों तक श्रोताओं के मन में मतली (vomit) करने की इच्छा उत्पन्न करता रहेगा. साथ ही साथ इसने श्रोताओं के दिल पे राज करने वाले 'हरे कृष्णा हरे राम' के मौलिक (original) 'दम मारो दम' गीत के साथ क्रूरतापूर्वक साहित्यिक बलात्कार भी किया है. धन्य है वो गीतकार जिसने एक ही गीत में दो जघन्य अपराधों को इतनी सफाई से अंजाम दिया है. गीतकार के द्वारा पहले लिखे गए गीतों का मैं कायल रहा हूँ. पता नहीं किस मज़बूरी में आकर उसने ऐसे गीत की रचना की! कहीं उन्होंने श्री रामगोपाल वर्मा जैसे दिग्गजों के साथ उठना बैठना तो शुरू नहीं कर दिया. Aa.aa a..aw.. Aa..aaa..aa aww... Hey..!! Phir Dekh Raha Hai Aaj Aankh Sek raha hai Kal haath Seekega Aaj Dheel Choda Raha hai Kal Khud hi tokega Aaj Mere liye Chair kheench raha hai Kal Meri Skirt Kheenchega Kheeche ga ki nahin ? hmm... ? गीत की शुरुआत एक स्त्री द्वारा यौन संसर्ग के भूखे पुरुषों पर टिप्पणी से होती है. एक नज़र में लगता है कि ये शब्द पुरुष की मानसिकता का गहरा मनोवैज्ञानिक शब्द उजागर करते हैं. फिर अगले ही पल अहसास होता है कि वह स्त्री खुद ही ज़्यादा इच्छुक है. वह अपनी इच्छा का दायित्व पुरुष पर लादते हुए अपने भावनाओं को बड़े ही सस्ते और छिछोरे ढंग से व्यक्त करती है. पर धैर्य रखें! सस्तेपन और छिछोरेपन के इससे भी ज्यादा ऊंचे शिखर आगे के शब्दों में स्पर्श किये गए हैं. Aakkad bakkad Bambay bo Aassi Nabbe Poore Sau Sau rupaye ka Dum jo lun Do sau gum ho udan Chhu Phir kyun main tu kar rahe Tain Tu.... इन शब्दों का न कोई मतलब है ना इस सन्दर्भ में सार्थकता. बस इतना पता चलता है कि नायिका की मनोवैज्ञानिक दशा बड़ी खराब है. नशा करके वो अपनी पीड़ा भूलने का प्रयत्न करती है. Unche se uncha banda, potty pe baithe nanga.. Phir kaahey ki society, saali kaahey ka paakhanda.. Bheje se kaleje se, kaleje ke khaleje se Mit jaaye hum, maroge toh jiyo bhi dum maaro dum. ये शब्द घटियापन के माउंट एवरेस्ट हैं. कई लेखकों को लगता है कि मल, मूत्र और सेक्स से सम्बंधित बेमतलब की टिप्पणियाँ करने से उनके लेखन में गहराई आती है. उनके लेखन से ऐसा महसूस होता है कि सड़क की गंदी नाली खुद में समुद्र जैसी विशालता की कल्पना कर बैठी है. पर सच्चाई यह है कि नाली में गोते लगाकर आप मोती नहीं पा सकते, सिर्फ पैर गंदे कर सकते हैं. यहाँ गीतकार की बात से भी ऐसा ही लगता है. वो चाहता क्या है? यही कि ऊंचे बन्दे शौच में कपडे पहनकर बैठें? क्या इससे सोसायटी ज़्यादा प्रामाणिक और बेहतर बन जायेगी? क्या सोसायटी का पाखण्ड इससे कम हो जाएगा? शौच में नंगे बैठने से सोसायटी के पाखण्ड का क्या सम्बन्ध है - यह रहस्य कई श्रोताओं के सामने है. Dum Maaro Dum Mit Jaaye Ghum Bolo Subha Shaam Hare Krishna Hare Krishna Hare Krishnaa Hare Ram Dum Maro Dum Mit Jaye Gham Bolo Subha Shaam Hare Krishna..Hare Krishna Hare Krishnaa Hare Krishna..Hare Krishna Hare Krishnaa Hare Ram Duniya ne hum ko diya kya? Duniya se hum ne liya kya? Hum sab ki parva karen kyun? Sub ne hamaara kiya kya? Aa aa..aaaa..aaa..a aa..aaa...aaa..aaa Dum Maaro Dum Mit Jaye Gham Bolo Subha Shaam Hare Krishna..Hare Krishna Hare Krishnaa..Hare राम यहाँ हम पुराने 'दम मारो दम' गीत के शब्द सुनते हैं. थोड़ा आराम महसूस होता है. लगता है सूअर के बाड़े से निकलकर किसी साफ़-सुथरे बगीचे में आ गए हैं. यहाँ अंगरेजी के प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन द्वारा एक युवा लेखक पर की गयी टिप्पणी याद आती है - 'तुम्हारी रचनाएँ मौलिक भी हैं और बेहतरीन भी. पर जो हिस्सा मौलिक है वो बेहतरीन नहीं है. और जो हिस्सा बेहतरीन है वो मौलिक नहीं है.' ठीक उसी तरह इस गीत के जो शब्द अच्छे हैं वो मौलिक नहीं है, और जो शब्द मौलिक हैं वो अच्छे नहीं हैं. Kya hai kahani Tere paap ki Topi Hai pyare Har Naap ki Khuli hai supermarket Baap Ki Kya hai Pasand kaho aap ki Andar ke bandar se ho Guftagu si ek baat Thi jusjtu si ek baat ho Guftgu si ek baat फिर से इन शब्दों के साथ हम सूअर के बाड़े में प्रवेश करते हैं. इन्हें सुनकर लगता है मानो कोई सड़कछाप वेश्या किसी अय्याश अमीरजादे को उकसा रही है. कंडोम और पुरुष जननांगों के लिए बेहूदी उपमाओं का इस्तेमाल करके यहाँ गीतकार भद्दी अश्लीलता पर अपनी पकड़ को दर्शाता है. कभी-कभी तो लगता है कि कहीं वो हिन्दी अश्लील साहित्य के पुरोधा श्री मस्तराम का पुनर्जन्म तो नहीं! Phir kyun main tu kar rahe Tain Tu.... Unche se uncha banda, potty pe baithe nanga.. Phir kaahey ki society, saali kaahey ka paakhanda.. Bheje se kaleje se, kaleje ke khaleje se Mit jaaye hum, maroge toh jiyo bhi dum maaro dum. Dum Maaro Dum Mit Jaae Gam Bolo Subah Shaam Hare Krishna..Hare Krishnaa Hare Krishnaa..Hare raam Dum Maaro Dum Mit Jaye Gham Bolo Subha Shaam Hare Krishna..Hare Krishna Hare Krishnaa.. Hare Krishna..Hare Krishna. Hare ram Aa aa..aaaa..aaa..a यहाँ फिर से हम गीत के शब्दों को सुनते हैं और मन ही मन शुक्रिया अदा करते हैं कि गीत ख़त्म हुआ. पर साथ ही एक प्रश्न की शुरुआत हमारे मन में होती है. हमारा संविधान मनुष्यों के साथ होने वाले बलात्कार पर कड़ी सज़ा देता है. पर साहित्यिक रचनाओं के साथ होने वाले बलात्कार पर कौन सजा देगा? कॉपीराईट: आलोक रंजन alok160@gmail.com (कृपया लेखक का श्रेय चुराने का कष्ट ना करें) ............................................................................................................ ब्लॉग: http://alok160.blogspot.com/ गब्बर सिंह' का चरित्र चित्रण: http://www.facebook.com/note.php?note_id=168951949816525 'मुन्नी बदनाम हुई' गीत की सप्रसंग व्याख्या: http://www.facebook.com/note.php?ote_id=161886377189749 'शीला की जवानी' गीत का भावार्थ: http://www.facebook.com/note.php?note_id=160894570622263 शीला की जवानी' का भावार्थ 'आयटम-आचार्य' की आवाज़ में सुनें!http://www.facebook.com/video/video.php?v=474080662539&comments अगर बाबा रणछोड़दास चांचड़ की जगह चुलबुल पांडे होते! http://www.facebook.com/note.php?note_id=181632775215109