Wednesday, July 27, 2011

'भाग भाग डी के बोस' गीत की व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुपरहिट फिल्म 'देल्ही बेली' के एक सुपरहिट गीत की हैं.  हिन्दी फिल्म जगत से कभी-कभार ऐसे  गीत आते हैं जो शालीनता और मर्यादा को ठेंगा दिखाकर करोड़ों दिलों को छू जाते हैं. शायद सभ्यता के दबाव से परेशान इंसान को इस तरह के गीतों से बंधन तोड़ने का अहसास होता है, और इसके शब्द हर जुबान पर चढ़ जाते हैं. 

Daddy mujhse bola, Tu galati hai meri 
Tujhpe Zindagani guilty hai meri
 
Saabun ki Shaqal mein, beta tu toh nikla keval jhaag
 
Jhaag jhaag…
 
Bhaag >>>
 
Bhaag bhaag……
दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिनके पिताओं ने उन्हें कम से कम एक बार नालायक ना कहा हो, अपनी अपेक्षाओं की दुहाई ना दी हो. भले ही वो पिता चार बार मैट्रिक फेल सरकारी चपरासी क्यों ना हो, वो अपने बेटे की तुलना खुद से करता ही करता है. गीत का नायक भी पिताओं के इस विचित्र मनोविज्ञान से पीड़ित है.   
 
Toh by god lag gayi
 
Kya se kya hua
 
Dekha toh katora
 
Jhaanka toh kuaa
 
Piddi jaissa chuhaa
 
Dum pakda toh nikla kala naag
 
Naag naag
 
Bhaag…>>>
इन पंक्तियों का पिछली पंक्तियों से क्या सम्बन्ध है, कह पाना मुश्किल है. बस इतना समझ आता है कि नायक किसी बड़ी मुसीबत में फंसा है. 

Bhaag bhaag DK bose, DK bose, D K bose
 
bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…. (x2 times)
 
Aandhi aayi aandhi aayi aandhi aayi..
 
Bhaag bhaag DK bose, D K bose, D K bose
 
Bhaag bhaag DK Bose dk bhaag….
 
Aandhi Aayi hai…
यह पंकियां इस गीत की आत्मा हैं. इसके शब्द दिल्ली की संस्कृति पर प्रकाश डालते हैं. परन्तु कैसे?
हर जगह की अपनी एक पहचान होती है. कश्मीर पर्वतीय सुन्दरता के कारण जाना जाता है, केरल समुद्र की सुन्दरता के कारण. बंगलोर सॉफ्टवेर उद्योग के कारण जाता है. तो मुंबई फिल्म उद्योग के कारण. दिल्ली जानी जाती है माँ-बहन से नाजायज संबंधों और जननांगों पर आधारित अपशब्दों के अत्यधिक प्रयोग के कारण. एक फूल की प्रशंसा करते वक़्त भी एक सच्चा दिल्लीवासी माँ-बहनों को याद करना नहीं भूलता. 
'डी के बोस और 'बोस डी के' की शाब्दिक कलाबाजी द्वारा गीतकार ने एक झटके में दिल्ली से साक्षात्कार कराने के साथ-साथ गीत को सुपरहिट बनाने की संजीवनी बूटी दे दी है. आज के समाज में जहां गीतों और संवादों में अपशब्दों के प्रयोग को सांस्कृतिक प्रगति का पैमाना माना जा रहा है, वहाँ इस इस शाब्दिक शीर्षासन ने एक मील के पत्थर के रूप में अपनी छवि बनाई है.



Hum toh hai kabootarr, Do pahiye ka ek scooter Zindagi 
Jo na * toh chale 
Arre kismat ki hai kadki, Roti? Kapda aur Ladki teeno hi
 
Paapad belo toh miley ..
 
Yeh bheja garden hai, aur tension maali hai.. yeah..
 
Mann ka taanpura, frustration me chhede ek hi Raag
 
Raag Raag….
 
Bhaag…

यहाँ गीत के नायक की जीवन की परेशानियों का चित्रण है. ऊटपटांग ढंग से कबूतर और स्कूटर में तुकबंदी कराने की कोशिश की गयी है. पर साथ ही एक बड़ी महत्त्वपूर्ण बात बतायी गयी है. वो यह कि नायक रोटी, कपड़ा और लड़की चाहता है, रोटी, कपड़ा और मकान नहीं. बड़ा ही इमानदारीपूर्ण वक्तव्य है ये. इससे दो चीजें पता चलती हैं. पहली तो यह कि मकानों के बढ़ते दामों के कारण नायक दिल्ली में मकान के सपने नहीं देखता. दूसरी यह कि लड़की के साथ होने पर नायक मकान की ज़रुरत महसूस नहीं करता. किसी भी सार्वजनिक स्थान पर प्रेम-क्रिया करने का साहस है उसके पास. 


Bhaag bhaag DK bose, DK bose, D K bose 
bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…. (x2 times)
 
Hey Aandhi Aayi Hai Aandhi Aayi Hai
 
Aandhi Aayi Hai…
 
Bhaag bhaag DK bose, DK bose, D K bose
 
Bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…
 
Daddy mujhse bola, Tu galati hai meri
 
Tujhpe Zindagani guilty hai meri
 
Saabun ki Shaqal mein, beta tu toh nikla keval jhaag
 
Jhaag jhaag jhaag
 
Bhaag
 
Bhaag bhaag DK bose, DK bose, D K bose
 
Bhaag bhaag DK "Bose dk" bhaag…. (x2 times)
 
aandhi aayi aandhi aayi aandhi aayi
 
Bhaag bhaag DK bose, D K bose, D K bose
 
bhaag bhaag DK Bose dk bhaag….
 
Aandhi Aayi hai…

यहाँ पुरानी पंक्तियों को दुहराया गया है. अतः उनपर फिर से चिंतन करने की ज़रुरत नहीं.


इस गीत का संगीत लोगों को ऊर्जा से भर देता है. 'भाग भाग' जैसे शब्द दर्शक को सिनेमाहाल से भागने के लिए नहीं, बल्कि वहाँ बैठकर आनंद लेने के लिए प्रेरित करते हैं.  सिनेमा को समाज का दर्पण माना जाता है, यह कहकर गीतकार 'बोड डी के' जैसे शब्द का प्रयोग उत्साह के साथ करता है.यह गीत सांस्कृतिक क्रान्ति का सूचक है. वह दिन दूर नहीं जब ऐसे गीतों की लोकप्रियता के कारण २-३ साल के बच्चे भी अपनी मधुर वाणी में अपशब्द बोलकर हमारे कानों को झंकृत और दिल को आह्लादित  करेंगे.  

Monday, July 25, 2011

ॐ भ्रष्टाचाराय नमः!!



आजकल एक फैशन सा चल पडा है. भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन करने का फैशन. लोग बिना सोचे-समझे भ्रष्टाचार का आमूल नाश करने पर तुल गए हैं. आखिर करें भी क्यों नहीं? इससे तुरंत लोकप्रियता जो मिल जाती है.

पर कोई यह सोचना नहीं चाहता कि भ्रष्टाचार वाकई देश के लिए अच्छा है या बुरा. बस एक ही रट लगा राखी है - भ्रष्टाचार हटाओ, भ्रष्टाचार हटाओ. अरे भाई, क्यों हटायें हम भ्रष्टाचार? बेचारे भ्रष्टाचार ने बिगाड़ा ही क्या है?

भ्रष्टाचार से गरीबी हटती है. जिस इंसान के पास कल तक बस के किराए के पैसे नहीं होते थे, आज वह करोड़ों के बैंक बैलेंस, गाड़ियों और बंगलों का मालिक है. और यह चमत्कार होता है सिर्फ एक चुनाव जीतने के कारण. जब देश का राजा ही अमीर नहीं होगा, तो प्रजा कैसे अमीर होगी? 

लोगों की शिकायत है कि देश के लाखों करोड़ों रुपये विदेशी बैंकों में जमा हैं.अब अपने देश के बैंकों का तो भरोसा है नहीं. मंदिर में भी धन सुरक्षित नहीं है. यहाँ कोई सुरक्षित है तो संसद और 5 स्टार होटलों में गोलियां बरसाने वाले आतंकवादी. ऐसे में अगर हमारे दूरदर्शी राजनेताओं ने देश का थोड़ा पैसा बाहर सुरक्षित रख ही दिया तो इसमें गलत क्या है!

यह तो रही राजाओं की बात; अब आते हैं प्रजा तक. भ्रष्टाचार आम आदमी की ज़िंदगी को भी आसान बनाता है. 

आम आदमी को गैस सिलिंडर के लिए लाइन में नहीं लगना पड़ता. ट्रेन के महंगे टिकट नहीं खरीदने पड़ते. चालान के पैसे नहीं भरने पड़ते. छोटे-मोटे अपराधों के लिए जेल नहीं जाना पड़ता. और तो और भ्रष्टाचार सरकारी कर्मचारी की कार्यक्षमता को बढाता है. ज़रुरत है बस थोड़ा एक्स्ट्रा खर्च करने की. 

एक्स्ट्रा खर्च करने के लिए धनी बनना आवश्यक है. हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है - 'धनमेवं बलं लोके'. अर्थात इस लोक में धन ही बल है. भ्रष्टाचार लोगों को धनी बनने के लिए प्रेरित करता है. अगर देश में अमीर और गरीब के साथ समान सलूक किया जाए तो अमीर बनना कौन चाहेगा?

कल हमारा देश अगर फिर से सोने की चिड़िया बन जाता है, तो इसका एकमात्र श्रेय जाएगा भ्रष्टाचार को. अतः ज़रुरत है कि हम हरेक स्तर पर भ्रष्टाचार को उचित सम्मान दें. भ्रष्टाचार है तो विकास है, विकास करने की प्रेरणा है. 


कॉपीराईट - आलोक रंजन 

Friday, July 22, 2011

अगर आप धैर्य सीखना चाहते हैं तो लड़कियों के कपडे की दुकान जाइए!


बचपन से ही मैंने छिपकली को धैर्य के मामले में अपना गुरु माना है. यह न तो उड़ सकती है, न उछल सकती है और न ही काफी तेज़ भाग सकती है. पर कई मीटर दूर सुस्ता रहे कीड़े को शिकार बना डालती है. यह कीड़ा उड़ सकता है और पलक झपकते छिपकली की पहुँच से दूर जा सकता है. पर छिपकली बड़े आराम से, धीरे-धीरे, बिना कोई जल्दबाजी दिखाए, बिना आवाज़ किये उस तक पहुँचती है और एक झटके में उसे गटक डालती है.

पर कुछ समय पहले  मुझे भाग्य से एक नया गुरु मिल गया जिसके सामने छिपकली नर्सरी की विद्यार्थी से ज़्यादा कुछ भी नहीं. वो है लड़कियों के कपड़ों की दुकान में बैठा सेल्समैन. 

लड़कियों को ईश्वर ने एक अद्भुत प्रतिभा दी है. जौहरी की तरह कपड़ों को परखने की क्षमता. उनके सामने आप हज़ारों कपड़ों का अम्बार खड़ा  कर दें. वो घंटों परिश्रम करके, हर कपडे के एक-एक धागे का  एकाग्रचित्तता से अनुसंधान करके अपना पसंदीदा कपड़ा खोज ही निकालेंगी. भले ही वो कपड़ा एक नन्हा सा रुमाल क्यूँ न हो!

अगर सामने कपड़ों का अम्बार न हो तो वे अपना उत्साह नहीं खोतीं. वो पूरी तल्लीनता से कपड़ों का अम्बार खड़ा करने में जुट जाती हैं. 

ऐसी विशेष परिस्थिति में उस दुकान के सेल्समैन का धैर्य निखरकर सामने आता है. भले ही उस नारी को साड़ी खरीदनी हो पर वो प्रत्येक स्कर्ट, ब्लाउज, टॉप, टू पीस, टी शर्ट, बंजारा सूट, घाघरा इत्यादि का व्यक्तिगत रूप से निरीक्षण करेगी ही करेगी. सिर्फ अपने साइज़ का नहीं, बल्कि पृथ्वी के हर इंसान के साइज़ का.

वह सेल्समैन कभी अपनी मुस्कान नहीं खोता. महात्मा बुद्ध जैसी परम शान्ति अपने चेहरे पर चिपकाए वो एक के बाद एक कपड़ा दिखाते जाता है. उसकी आतंरिक शान्ति इस विचार से भी भंग नहीं होती कि उस नारी के प्रस्थान के पश्चात उसे उन सैकड़ों कपड़ों को बारी-बारी से तह लगाकर वापस शेल्फ में सजाना है. ताकि पंद्रह मिनट बाद फिर कोई अन्य जुझारू नारी आए तो उसे अम्बार खड़ा करने के अवसर से वंचित न रहना पड़े.

इस परम धैर्य के प्रदर्शन के बाद उसे मिलता ही क्या है? कई बार नारियां घंटों लगाने के बाद कुछ भी नहीं खरीदतीं. कुछ तो बिल बनवाने के बाद अपने फैसले से मुकर जाती हैं.

कभी-कभी सोचता हूँ अगर उस धैर्य का दस प्रतिशत भी मुझमें आ जाए तो मैं यह मानव जीवन सफल मानूंगा. पर यह धैर्य आए कैसे? मुझमें तो लड़कियों के साथ शॉपिंग जाने का भी साहस नहीं. 


आलोक रंजन

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अन्य रचनाएँ: https://www.facebook.com/notes.php?id=607557539

Wednesday, July 20, 2011

मैं आपकी गाड़ी का होर्न बोल रहा हूँ

आप सबने मुझे हज़ार बार सुना होगा, पर मेरी कभी नहीं सुनी.


'पें-पें' की कर्कश आवाज़ के पीछे मेरी कई भावनाएं भी हैं, इस पर आपका ध्यान कभी नहीं गया. जाए भी कैसे? जब कोई दूसरा मुझे बजाता है तो आपके मन में गालियाँ आती हैं. जब आप खुद अपने कर-कमलों से मुझे बजाते हैं तो इस मद में चूर हो जाते हैं कि आपकी उँगलियों की नन्ही हरकतों से सामने खड़ी गाड़ियां आपके सामने से हटने के लिए खुद-ब-खुद प्रेरित हो जाती हैं.

वैसे तो मैं दुनिया की हर गाड़ी का एक महत्त्वपूर्ण अंग हूँ और मेरा आविष्कार सामने वाली गाड़ी को अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाने के लिए हुआ था. पर धीरे-धीरे कई उद्देश्य जुड़ते गए. 

बच्चों ने मुझे खिलौना बना डाला. वो खड़ी गाड़ी में घुसकर मुझे भिन्न-भिन्न गतियों से बजाते हैं. एक ही आवाज़ तरह-तरह से मुझसे निकलती है. उनका मनोरंजन हो जाता है और मेरा व्यायाम. 

पति मेरा उपयोग सायरन की तरह करते हैं. पत्नी फोन पर लगी है या श्रृंगार में तल्लीन है. बार-बार मुझे बजाकर पति यह जतलाना चाहते हैं कि बहुत हो चुका. 

दिल्ली में ब्लूलाइन बसों के चालक मेरा उपयोग एक ज्योतिषी की तरह करते हैं. मुझे बजाकर वो सामने वाले को आगाह करते हैं कि मृत्यु के ग्रह उसपर मंडरा रहे हैं. अगर वो रास्ते से नहीं हटा तो उसके शरीर का बस के नीचे आना और आत्मा का बादलों के पार चला जाना तय है.

कई अनाड़ी मेरा इस्तेमाल 'ट्रैफिक क्लीनर' के रूप में करते हैं. सैकड़ों गाड़ियों के जाम में वो मुझे बजाते चले जाते हैं. उन्हें लगता है मेरी दिव्य ध्वनि से जाम हट जाएगा.

अमीरजादे मेरा इस्तेमाल शक्ति प्रदर्शन के लिए करते हैं. उन्हें पता है अपने बल पर जीवन में कुछ कर पाना थोड़ा मुश्किल है. तो बाप की गाढ़ी या काली कमाई से खरीदी गाड़ी में मुझे बजाकर थोड़ा रौब जमा लिया जाए. 

तरह-तरह के उपयोगों और दुरुपयोगों के मध्य मेरी आवाज़ मेरी अपनी ही आवाज़ में दबकर रह जाती है. पर आज मौका मिला है. बस एक बात कहना चाहता हूँ.

हालांकि मैं बजने के लिए ही पैदा हुआ हूँ, पर मुझे इतना न बजाया करें. मेरी आवाज़ से आस-पास का ही नहीं, आपके दिमाग के अन्दर का शोर भी बढ़ता है. और जिस दिन यह शोर सीमा से बाहर चला जाएगा, कोई भी आपकी बजाकर चला जाएगा. मुझे बजाते-बजाते आप खुद ही बज जाएंगे. 

Sunday, July 03, 2011

I love quoting myself - 5


  1. In advertising, clients expect you to get orange juice from an egg. What makes it trickier is that they hand you a boiled egg.
  2. इंडिया टीवी ने घोषणा कर दी है कि ऐश्वर्या को जुड़वा बच्चे होंगे. ये खोजी पत्रकार एक दिन गर्भधारण विशेषज्ञ डॉक्टरों और ज्योतिषियों का धंधा चौपट करके छोड़ेंगे.
  3. ये बादल, ये गहराता अन्धेरा. मानो अब तो यह बारिश सैलाब लेकर ही आयेगी. पर कहीं दिल में यह शुबहा भी है कि यह मादक मंजर कहीं उन रिश्तों की तरह तो नहीं जो दिलों में ख़्वाब तो कई जगाते हैं, पर अंत में इंतज़ार के अलावा कुछ हाथ आता नहीं.
  4. बदतमीजी अगर तमीज के साथ की जाए तो ज़ायका ही बदल जाता है.
  5. Our government encourages starving, discourages fasting.
  6. The best thing about our government is that it uses non violence to deal with violent people and uses violence to deal with non violent people.
  7. हाथ से बर्तन फिसला और मेरे फ्रिज ने पलक झपकते क्लियोपैट्रा की तरह अंग-प्रत्यंग में दुग्धस्नान किया.
  8. जब सवारी उल्लू हो तो लक्ष्मीजी कैसे-कैसे लोगों के पास जायेंगी !
  9. The addiction to alcohol may cost you your liver. But the addiction to monthly salary may cost you your dreams.
  10. ‎1. Satya Sai Baba 2. Osama Bin Laden 3. ........... ?
  11. Men call women ‘ the weaker sex’. Weaker than whom?
  12. आप सुबह साढ़े तीन बजे ऑफिस में पड़े हैं, घर जाने के लिए बेताब हैं, और एक भले इंसान ने ऊंचे स्वर में स्पीकर्स पर गाना लगा दिया है - "आज जाने की जिद्द ना करो....आज जाने की जिद्द ना करो..."
  13. Women feel attracted to tigers who can live like lambs after marriage.
  14. I've heard so many times - 'You are a guy and you don't like cricket!!' Well, I've liked cricket twice, in Lagaan and in Iqbal.
  15. थप्पड़ से नहीं, नक़ली रंगों से डर लगता है साहब!
  16. ये इश्क नहीं आसान इतना तो समझ लीजै.
    दुनाली की गोली है, बिन पानी गटकनी है.
    - मिर्ज़ा आलोक
  17. Sometimes you want to feel so quite that even your thoughts disturb you.