'शीला की जवानी' और 'मुन्नी बदनाम हुई' जैसे सुपरहिट उत्तेजक गीतों के भाव को पाठकों के सामने लाने के बाद अब लेखक ने भोजपुरी गीतों के मर्म को टटोलने का निर्णय लिया है. हिन्दी के बढ़ते वर्चस्व (dominance) के कारण प्रादेशिक भाषाओं को हमेशा अपने अस्तित्त्व पर मंडराते खतरे की शिकायत रही है. साथ ही भोजपुरी संगीत पर हमेशा अश्लीलता का लांछन लगाने के कारण इस मधुर प्रादेशिक भाषा पर ख़तरा और भी संगीन हो गया है. ऐसे में आवश्यक हो गया है कि भोजपुरी पृष्ठभूमि के बुद्धिजीवी आगे आकर भोजपुरी संगीत का वास्तविक मर्म सभी के सामने लाएं. अश्लीलता की झीनी चदरिया के भीतर छुपे गहन साहित्यिक अर्थ को उजागर करें.
भावार्थ पढ़ने से पहले कृपया इस गीत का भरपूर आनंद लें. अगर इस गीत को देखते समय महिलाएं आपके साथ हों, तो उनकी प्रतिक्रया जानने के लिए बार-बार उनके चेहरे को ना देखें. लेखक का परम विश्वास है कि वो इस गीत को आपसे भी ज्यादा भाव-विभोर होकर देख रही हैं.
भावार्थ:
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे - २ बार
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे
गीत की शुरुआती पंक्तियाँ सुनकर यह अहसास होता है कि यह एक स्त्री की अपने अतिठरकी पति की हरकतों से जनित व्यथा की गाथा है. परन्तु यह तो सिर्फ आभासी अर्थ है. वास्तव में इस गीत के निर्दोष शब्दों के पीछे एक गहरा सामजिक व्यंग्य छुपा है. यह भोली-भाली जनता जनता की निकम्मी पुलिस से होने वाली परेशानी का संगीतमय चित्रण है. 'छुच्छे' शब्द का मतलब खाली होता है. अर्थात हमारी पुलिस बेमतलब के अपराधियों को धमकाने का नाटक करती है पर उनपर नियंत्रण करने लायक शक्ति नहीं रखती. यह आम जनता की बैरी है, गुनाहगारों की नहीं.
कब्बो ऊपर करे, कब्बो नीचे करे
कब्बो दाएं करे, कब्बो बाएँ करे
कब्बो दिनवा करे, कब्बो रतिया करे
कब्बो देखि रहे बन्दूक ताने खड़े
इश्श्श...
जान मारे हमारी कसइया
छुच्छे फायरिंग करे
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे
इन पंक्तियों के सुनने से पुनः आभास होता है कि अतिकामुक पति अपनी उत्तेजना को अभिव्यक्त करने के लिए उस स्त्री के साथ हर तरह की शारीरिक हरकत कर रहा है. परन्तु गहराई में जाने पर पता चलता है कि ये शब्द पुलिस द्वारा की जाने वाली निरर्थक गतिविधियों पर प्रकाश डाल रहे हैं. वो अपराधियों को पकड़ने के लिए कोई ठोस कदम तो उठाती नहीं, बस ऊटपटांग हरकतें करके व्यस्त दिखने की कोशिश करती है.
बोर्डर ना जाए कब्बु घर ही रहे
झुट्ठो लड़ाई खाली हमसे lade
डरिहा न जानके भतार तू ही सिपहिया
तोड़ती है गतर गतर सखी तोर देहिया
हाय ज़ालिम करे दुरगतिया
छुच्छे फायरिंग करे
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे
अब पुलिसवालों की कायरता पर सवाल उठाया गया है. वह बड़े अपराधियों से लड़ती नहीं; बस असहाय जनता पर मर्दानगी दिखाती है. ऐसे घरघुसना (घर में घुसे रहने वाले) सुरक्षाकर्मियों से लोगों का जीना मुहाल हो गया है.
कब्बो नलवा दिखाए, कब्बो घोड़वा दिखाए
कब्बो टिकली पे ज़ालिम निशाना लगाए - २ बार
कर देल हालत हाय दैया पानी-पानी
ठप्पा लगाए करे मनमानी
हरदम कराए ताता-थैया
छुच्छे फायरिंग करे
सैयां मिलल बा सिपहिया
छुच्छे फायरिंग करे
बैरी भईल रे लथुनिया
छुच्छे फायरिंग करे
यहाँ पुलिसवालों की हरकतों का नाटकीय चित्रण है. वह अपनी बन्दूक से विचित्र हरकतें करके जनता में भय डालने का प्रयास करती है. पर भूल जाती है कि उसका कर्त्तव्य लोगों को भयरहित करना है, भयभीत करना नहीं. निहत्थे लोग उसकी उँगलियों पर नाचते हैं और अपराधी उसे नचाते हैं.
यह गीत एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक व्यंग्य है. मनोरंजक शब्दों के पीछे पीड़ित जनता की व्यथा है. 'छुच्छे' शब्द का काफी सुन्दरता से प्रयोग हुआ है. जब नायिका पूरी ताक़त और जज्बातों से 'छुच्छे' शब्द बोलती है तो हम अपना अंतर्मन टटोलने पर मजबूर हो जाते हैं कि हमारी पुलिस व्यवस्था इतनी 'छुच्छी' क्यूँ है!
लेखक: आलोक रंजन
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'शीला की जवानी' गीत का भावार्थ: http://www.facebook.com/note.php?note_id=160894570622263
शीला की जवानी' का भावार्थ 'आयटम-आचार्य' की आवाज़ में सुनें!http://www.facebook.com/video/video.php?v=474080662539&comments
1 comment:
kamaal kar diya lekhak mahoday !! :)
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