Friday, November 26, 2010

मनमोहन और कसाब

मनमोहन: क्या हुआ? बात क्यों नहीं करते?
कसाब: नहीं करूंगा. जाओ यहाँ से?
मनमोहन:  नाराज़ हो? देखो तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ?
कसाब: मुझे नहीं देखना.
मनमोहन: अच्छा, नहीं दिखाउंगा. पर बताओ तो हुआ क्या?
कसाब: घर की याद आ रही है.
मनमोहन: घर की याद आ रही है? यहाँ कोई दिक्कत है क्या? 
कसाब: दिक्कत तो नहीं है.
मनमोहन: तो किस बात का रोना? घर जैसा आराम तो है यहाँ.
कसाब: अब ज़्यादा एहसान मत झाड़ो.
मनमोहन: एहसान नहीं झाड रहा. पर तुम्हारी सुरक्षा पर करोड़ों खर्च कर दिए. अच्छा खाने-पीने का इंतज़ाम है. सेलिब्रिटी जैसी हैसियत है.      बच्चा-बच्चा तुम्हें जानता है. और क्या चाहिए?
कसाब: वो सब तो ठीक है पर?
मनमोहन: पर क्या? अब जन्नत जैसी हूरें भी चाहिए? साले ठरकी!
कसाब: नहीं, वो बात नहीं है.
मनमोहन: तब क्या बात है?
कसाब: मुझे डर है कि एक ना एक दिन आपलोग मुझे मार डालेंगे.
मनमोहन: ओफ! खोदा पहाड़, निकली चुहिया. बस इतनी सी बात?
कसाब: मौत का खौफ छोटी बात है क्या?
मनमोहन: अरे, तुम्हारे पहले सैकड़ों आतंकवादी आये, शान से हमारी जेलों में रहे और इज्ज़त से अपने मुल्क लौट गए.
कसाब: सो तो है.
मनमोहन: हमने उन्हें नहीं मारा तो तुम्हें क्यूँ मारने लगे?
कसाब: पर आपने उन्हें मारा क्यूँ नहीं?
मनमोहन: अरे भाई, हम 'अतिथिदेवो भव' के सिद्धांत में विश्वास रखते हैं.
कसाब: हाँ, मैंने सुना है.
मनमोहन: अब बदलते वक़्त के साथ हमने उसे 'आतंकवादीदेवो भव' में बदल दिया है. अतिथियों से ज्यादा तो यहाँ आतंकवादी आते हैं. जितने  बड़ा आतंकवादी, उतने बड़े देवता जैसा सम्मान. 
कसाब: क्या खूबसूरत उसूल हैं आपके. इंशाल्लाह. कमाल का मुल्क है यह!
मनमोहन: अब तो चिंता मिट गयी तुन्हारी?
कसाब: हाँ. मुझे घर कब भेजोगे?
मनमोहन: कुछ कह नहीं सकते. बस अपने किसी विमान के अपहरण का इंतज़ार है. उसके तुरंत बाद तुम्हें तुम्हारे कुछ दोस्तों के साथ            भेज देंगे.
कसाब:ठीक है. शुक्रिया!
मनमोहन: अब तो देखो तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ.
कसाब: क्या लाये हो?
मनमोहन: आज 26 नवम्बर की दूसरी सालगिरह है. सोचा तुम्हारे लिए चॉकलेट के स्वाद वाला केक लेता आऊँ. 
कसाब: चॉकलेट मुझे पसंद नहीं. स्ट्रॉबेरी लेकर आओ.
मनमोहन: उफ़! ऐसे महत्त्वपूर्ण दिन पे जिद नहीं करते. अभी चॉकलेट खा लो. अगली सालगिरह पे स्ट्रॉबेरी ले आउंगा.
कसाब: अगली सालगिरह तक यहाँ रहूंगा तब तो? विमान...अपहरण. हा हा हा! 
मनमोहन: शरारत गयी नहीं तुम्हारी! हा हा हा!

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