Tuesday, April 13, 2010

सुख और दुःख


कुछ भी यहाँ टिकता नहीं, दुःख के हों पल या सुख के क्षण
क्षण-भंगुर इस जीवन में हर अनुभव मानो तुहिन कण.

सुख की प्रतीक्षा करते हम अनवरत सारा जीवन
तम से भरे इस रंगमंच पर खोजते वह मद्धिम किरण
रश्मियाँ तो आती हैं, कभी रुक-रुक कभी अविराम
पर आते ही विलुप्त हो जातीं, छोड़कर स्मृतियाँ अभिराम.

दुःख का भी विश्वास नहीं, पर उसकी उपस्थिति सघन
सुख की आंधी आते ही वीरान हो जाता उसका उपवन
विषाद की यह अंधी गलियाँ लगती भले ही अंतहीन
पर सुख के मोड़ बीच-बीच में करते हमारा भय क्षीण

सुख भी चिर रहता नहीं, दुःख का भी विश्वास कहाँ
दोनों ही अभिनेता प्रबल, पल-प्रतिपल बदलते भंगिमा
इन दोनों के प्रपंच में जो न अपनी आसक्ति जगाता
अशिरता के प्रभाव से विमुक्त आनंद सरिता में गोते लगाता. 

No comments: