आदरणीय बॉस,
शुक्रिया. शुक्रिया इस बात का कि आपने इस पत्र को पढने से पहले फाड़ा नहीं. कल की उस घटना के बाद कोई भी स्वाभिमानी पुरुष इस बात को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसकी प्राणप्रिया सहधर्मिणी के साथ रात्रि व्यतीत करने वाला इंसान उसे इस तरह चिट्ठी लिखने की धृष्टता करे. और चिट्ठी भी ऐसी जिसमे अफसोस या क्षमा याचना की भनक तक ना हो. बल्कि उसमें यह बताने की कोशिश की गयी हो कि यह कार्य सर्वथा उचित था.
उफ़! यह तो हद है. एक तो गुनाह-ए-अज़ीम और ऊपर से गुनाह को जायज बताने की हिमाकत! आपने तो ऐसी आशा बिलकुल भी न की होगी. ऊपर से गुनाहगार भी कौन? आपके ऑफिस में काम करने वाला एक नाचीज़, दो कौड़ी का जूनियर जिसे कल तक आँख उठाकर बात करने की हिम्मत तक नहीं होती थी. आज उसका ये साहस कि आपके बिस्तर तक पहुँच गया. वैसे खबर तो ये है कि यह दो महीनों से होता आ रहा था, वो भी आपकी नाक के नीचे. और आपको खबर तक नहीं.
लेकिन किया भी क्या जा सकता है? ज़िंदगी में कई घटनाएँ ऐसे ही घटती हैं. आपने उनकी कल्पना भी नहीं की होती और विधाता उनको आपके सामने पटक देता है.
लेकिन ये सब हुआ कैसे? जिज्ञासा का कीड़ा आपके मन में पीड़ा से कुलबुला रहा होगा. वो तरस रहा होगा कि ज्ञान की दो बूँदें उसकी जीभ पर टपकाई जाएँ और वह तृप्त हो जाए. उसकी तृष्णा विलुप्त हो जाए.
तो चलिए, आरम्भ से आरम्भ करते हैं.
सृष्टि का ये महान सत्य है कि कामेच्छा का काम-शक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है. पार्क में, पार्टियों में, बसों में आपने अपनी उम्र के कई बूढों का दर्शन किया होगा जिनमें स्त्री-संसर्ग की इच्छा तो तीव्र होती है, पर शरीर की वाहीनियाँ और पेशियाँ अपना सहयोग नहीं देतीं. इससे काम-हताशा या सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन का जन्म होता है. अब अगर दादाजी का विवाह अपनी पोती की उम्र की कन्या से हो जाये तो क्या होगा! अब पोतियाँ भी पहले जैसी तो रहीं नहीं. मन मुताबिक चीज न मिली तो इधर उधर मुंह मारना शुरू कर देती हैं. ऐसा ही कुछ आपके साथ हुआ. अब आपका भी क्या दोष? चढ़ती उम्र का इलाज़ तो होता नहीं. ऊपर से दारु और सिगरेट का शौक. मर्द दिखने के चक्कर में मर्दानगी का नुकसान कर बैठे. फिर आपने अपनी तरफ से पूरी कोशिश तो की ही थी. मीठी-मीठी बातें कीं, कवितायें लिखीं, महंगे उपहार दिए, बालों में रंग लगाया. पर उस चीज की कमी रह गयी.
ये तो हुआ घटना का एक पहलू. अब दूसरे पहली पर ध्यान देते हैं. वर्षों से डायबिटीज होने के कारण आपने शुगर लेना छोड़ दिया था. इसलिए आपके शरीर में मिठास की कमी हो गयी थी. और जुबान पर तो कुछ ज्यादा ही बुरा असर पडा. आपकी कड़वी बोली सुनकर यह ब्रह्मसत्य कोई भी जान सकता था. ऑफिस में आपकी दांत और फटकार सुन किसका मिजाज गर्म नहीं होता था? भला ये भी कोई तरीका है! आपके यहाँ नौकरी करते हैं; खुद को बेचा थोड़े ही है. मैंने भी कुछ ऐसा ही महसूस किया. मुझे लगा कुछ तो आपको वापस मिलना चाहिए. तभी एक फ़ाइल पहुंचाने के दौरान आपकी युवा, सुन्दर, आकर्षक धर्मपत्नीजी से मुलाकात हुई. आगे की बातें विस्तार से सुनकर आपके दिल को और ज़ख्म नहीं पहुँचाना चाहता. आप अंदाज़ा लगा सकते हैं. वही सब हुआ जो पिछले दो महीनों से होता चला आ रहा था. आपको तो कल पता चला. मैंने भी सोचा देर क्यूँ की जाए. आपका 'सरप्राइज गिफ्ट' आपको मिलना चाहिए.
एक तरह से देखिये तो मेरा कदम गलत भी नहीं था. आप हमेशा अपनी धर्म-संस्कृति की दुहाई देते हैं. धर्मग्रंथ तो पढ़े ही होंगे, और उनमें देवताओं के किस्सों पर ध्यान गया ही होगा. भगवन कृष्ण लड़कियों के अंतर्वस्त्र चुराकर भाग जाते थे. सोलह हज़ार आठ पत्नियां थीं उनकी. और फिर देवराज इन्द्र के क्या कहने? किसी सुन्दर स्त्री के किस्से सुने और चड्डी में हलचल शुरू हो गयी. गौतम की पत्नी अहिल्या को भी न छोड़ा. फिर सती अनुसूया की कहानी क्यूँ भूल जाएँ? ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों उनके सतीत्व का हनन करने पहुँच गए थे. ये तो हुई देवों की बात; ऋषि-मुनी और उनके शिष्य कम थोड़े ही थे. ऋषि अप्सराओं के साथ, उनकी पत्नियां शिष्यों के साथ. जी हाँ, ऐसी घटनाओं की कमी नहीं जहां शिष्य गुरुमाताओं के साथ भाग निकले थे. फिर मैंने कौन सा पाप किया? अपने धर्म और संस्कृति की अस्मिता बनाए रखा. बस!
अब आख़िरी बात जिसे सुनने के लिए आपकी जान निकली जा रही है. आप समझ नहीं पा रहे कि मुझमें इतना साहस कहाँ से आया? मैं आपसे ऐसी बातें कैसे कर ले रहा हूँ? क्या मुझे नौकरी खोने का डर नहीं है? डर तो है, बहुत है. पर मार्केट में प्रतिभा के पारखियों की कमी तो है नहीं. ऐसा ही एक पारखी मुझे भी मिल गया. पत्र के साथ त्यागपत्र भी भेज रहा हूँ.
आपका विश्वासी-
शंख
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